रेज़ांग ला में लड़ने वाली चार्ली कंपनी का हर जवान हीरो था
राजीव पुरोहित बात फ़रवरी 1963 की है. चीन से लड़ाई ख़त्म होने के तीन महीने बाद एक लद्दाखी गड़ेरिया भटकता हुआ चुशूल से रेज़ांग ला जा पहुंचा। एकदम से उसकी निगाह तबाह हुए बंकरों और इस्तेमाल की गई गोलियों के खोलों पर पड़ी. वो और पास गया तो उसने देखा कि वहाँ चारों तरफ़ लाशें ही लाशें पड़ी थी वर्दी वाले सैनिकों की लाशें। “किसी की राइफ़ल टूट कर उड़ चुकी थी, लेकिन उसका बट उसके हाथों में ही था। हुआ ये था कि लड़ाई ख़त्म होने के बाद वहाँ भारी हिमपात हो गया और उस इलाके को ‘नो मैन्स …