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शिमला समझौता पर भारी पड़ी थी बेनज़ीर की खूबसूरती

राजीव पुरोहित

ठीक 50 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ था. उस वक्त समझौते से ज़्यादा चर्चा बेनज़ीर की हुई थी, जो अपने पिता के साथ भारत आईं थीं। तब भुट्टो ने उन दिनों अमरीका से गर्मियों की छुट्टी में पाकिस्तान आईं अपनी 19 वर्षीय बेटी बेनज़ीर से शिमला चलने को कहा था।
विमान में बग़ल में बैठे उनके पिता ने उन्हें समझाया कि इस यात्रा के दौरान ‘तुम्हें बिल्कुल भी मुस्कराना नहीं है’।

भारतीय लोगों को ये आभास नहीं होना चाहिए कि उनकी ज़मीन पर पाकिस्तान के 93,000 युद्धबंदियों के रहते, बेनज़ीर को इस यात्रा में मज़ा आ रहा है। जैसे ही बेनज़ीर शिमला के हैलीपैड पर उतरीं, सबसे पहले जिस बात पर उनका ध्यान गया वो था कि इंदिरा गांधी की क़द काठी कितना छोटी है। मिलते ही बेनज़ीर ने उनका अभिवादन किया, “अस्सलामवाले कुम.” इंदिरा ने मुस्करा कर जवाब दिया, “नमस्ते.”
शिमला के लोगों में बेनज़ीर जितनी हिट हुईं, उतने स्वयं भुट्टो भी नहीं। वो जहाँ भी जातीं लोग उनको घेर लेते।


एक दिन जब वो शिमला के माल रोड पर कुछ ख़रीदारी करने निकलीं तो उनके चारों तरफ लोग इकट्ठा हो गए. हर कोई उनसे इंटरव्यू करना चाहता था। बेनज़ीर उनके पिता के सचिव के साथ मॉल रोड के सिनेमा हॉल में उस वक़्त की हिट फिल्म पाकीज़ा भी देखी और वहाँ की एक मशहूर किताब की दुकान से कुछ किताबें ख़रीदीं।

बेनज़ीर को इस बात से भी बहुत उलझन हो रही थी कि पूरे भारतीय मीडिया का ध्यान उनके कपड़ों पर लगा हुआ था। उधर उनके पिता और पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की समझ में ही नहीं आ रहा था कि भारतीय मीडिया बेनज़ीर को इतनी तरजीह क्यों दे रहा है।

बेनज़ीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “मुझे सबसे ज़्यादा परेशान ये चीज़ कर रही थी कि भोज के दौरान इंदिरा गांधी पूरे समय मुझे ही निहारती रही थीं.”

अचानक 2 जुलाई को भुट्टो ने कहा कि पैकिंग शुरू करो, “हम लोग कल पाकिस्तान वापस जा रहे हैं.” बेनज़ीर ने पूछा, “बिना समझौता किए हुए?”

भुट्टो ने कहा, “हाँ, बिना समझौते किए हुए।”

सिर्फ भुट्टो को शाम चार बज कर तीस मिनट पर इंदिरा गांधी से एक औपचारिक मुलाकात करनी थी और रात में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल भारतीय प्रतिनिधिमंडल को विदाई भोज देने वाला था।

भुट्टो ने बेनज़ीर से कहा कि किसी से कहना नहीं. मैं इस बैठक में इंदिरा गांधी पर अपना आखिरी दांव चलने जा रहा हूँ। थोड़ी देर में भुट्टो वापस आ गए. इस बार उनके चेहरे पर चमक थी. वो बोले, “अब लगने लगा है कि इंशाअल्लाह समझौता हो जाएगा।”

भुट्टो ने बेनज़ीर को बताया कि इंदिरा तनाव में अपने हैंडबैग के साथ खेल रही थीं और ये आभास दे रहीं थीं कि उनकी जीभ को प्याले की गर्म चाय बिल्कुल रास नहीं आ रही है. तभी उन्होंने एक लंबी सांस ली और आधे घंटे तक लगातार बोलते रहे. रात के खाने के बाद भी दोनों नेताओं के बीच लगातार बात होती रही।

पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने एक कोड ईजाद किया कि अगर समझौता हो जाता है तो वो कहेंगे कि लड़का हुआ है और अगर समझौता नहीं होता है तो कहा जाएगा कि लड़की पैदी हुई है।

रात के बारह बज कर चालीस मिनट पर बेनज़ीर अपने शयन कक्ष में थी तभी उन्हें ज़ोर का शोर सुनाई पड़ा, “लड़का है, लड़का है।”

वो नीचे की तरफ दौड़ीं लेकिन वहाँ पत्रकारों और कैमरामेनों का इतना बड़ा हुजूम था कि वो जब तक कमरे में पहुंचती ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो और इंदिरा गांधी शिमला समझौते पर दस्तख़त कर चुके थे।

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