साल 1976-77 में डॉ ब्रज बसी लाल जी जो आर्कियो लॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया में बड़े पद पर थे ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद पर खुदाई प्रारंभ की।
उनकी टीम में कई युवा आर्कियोलोजी वाले थे जिनमें एक युवा श्रीमान के के मुहम्मद साहब भी थे जो उस खुदाई दल में एक मात्र मुस्लिम भी थे।
के के मुहम्मद जिनको आज मैं सुन रहा था ने अपनी याद से बताया कि उस साल जैसे ही हम खुदाई वाले इलाके में पहुंचे तो देखा कि हमारे रहने के तम्बू एक दम मस्जिद के सामने ही लगाये गए हैं।
मैं सुबह सुबह Excavation से पहले exploration करने मस्जिद के दरवाजे पर पहुंचा तो पाया कि एक पुलिस वाला वहां ड्यूटी पर था और मस्जिद के दरवाजे पर ताला लटका था।
हम आर्कियोलोजी वालों को ट्रेनिंग में बताया जाता है कि जहाँ भी खुदाई लगती है तो उसके आसपास के इलाके को भी अच्छे से देखना चाहिए क्यूंकि इन सब बातों का आपस में सम्बन्ध होता है।
मैं ताला खुलवा कर अंदर जाना चाहता था लेकिन मुझे पुलिस वाले ने साफ़ मना कर दिया कि वो ताला नहीं खोलेगा फिर मैंने उसे बताया कि भाई हम तो यहाँ भारत सरकार की तरफ से सब कुछ खोदने आये हैं।
फिर उस भले आदमी मस्जिद का ताला खोल दिया और जैसे ही मैं अंदर पहुंचा पहली नज़र में ही मुझे दीवारों में खड़े मंदिर के स्तम्भ और अन्य टुकड़े नज़र आये।
पिलर्स की बनावट और मस्जिद की दीवारों में कोई मेल नहीं था लेकिन मस्जिद इन्हीं चार पिलर्स पर ही खड़ी थी।
मैंने सबको गिना तो मुझे चार स्तम्भ पूरे सूरे वहां दिखाई दे गए और मैं फिर थोड़ा और मुआयना करके बाहर निकल आया।
मैंने यह बात डॉ बी बी लाल जी को बताई उन्होंने मेरी खोज को गंभीरता से सुना तो सही लेकिन कुछ कहा नहीं हम अगले कई दिनों तक वहां खुदाई करते रहे।
एक दिन मस्जिद की पश्चिमी दीवार के बाहर के हिस्से हमें एक आधार मिला जहाँ से एक पिलर उखाड़ा गया होगा फिर हमें एक एक करके चारों आधार मिल गए और हमने यह सारे एविडेंस डॉक्यूमेंट कर लिए।
जिन दिनों वहां खुदाई चल रही थी वहां दिनभर स्थानीय हिन्दुओं और मुसलामनों का तांता सा लगा रहता था और वो हमारे से कुछ कुछ पूछने की कोशिश किया करते थे।
स्थानीय मुसलमान मेरे पास आ जाते थे और एक आध बार मैंने यह बात उन्हीं से सुनी थी कि यह एक साधारण सी मस्जिद है हमारे लिए इसका कोई खास महत्व नहीं है।
लेकिन हिन्दुओं के लिए यह जगह बहुत मायने रखती है हमें यह जगह हिंदुओं के लिए छोड़ देनी चाहिए
हमने वहां मिले सामान की कार्बन डेटिंग विधि से जांच करवाई तो पता चला कि यह निर्माण सन 1200 AD के आसपास का है हमने अपनी रिपोर्ट विभाग में जमा कर दी और सब वापिस लौट गए।
मेरी भी बदली पहले कहीं और हुई और फिर आगे से आगे चलते चलते मैं मद्रास पहुँच गया और लगभग ग्यारह साल का समय भी बीत चुका था।
तब तक देश में राम मंदिर निर्माण की लहर उठ चुकी थी और हमारे द्वारा बनाई गयी रिपोर्ट चर्चा में थी और एक दिन अचानक से JNU और अलीगढ मुस्लिम विश्वविधालय के इतिहासकार इरफ़ान हबीब और रोमिला थापर के नेतृत्व में सक्रिय हुए और अखबार में स्टेटमेंट दे दिया कि बी.बी. लाल जी को अयोध्या खुदाई में मंदिर का कोई सबूत नहीं मिला था ।
ये राम मन्दिर की माँग करने वाले फर्जीवाड़ा कर रहे हैं।
मैंने सभी के बारे में पता किया तो पता चला कि ये सभी मार्क्सवादी इतिहासकार थे और इनका प्रचार इतना तेज था कि मुझे मद्रास में भी अखबारों के माध्यम से सब पता चल रहा था।
उसवक्त मेरी उम्र 36 वर्ष की थी और मेरे मन में इस बात का क्रोध आया कि एक तो ये इतिहासकार मीडिया के माध्यम से देश को गुमराह करके झूठ बोल रहे हैं दूसरे हमें तो वहां मंदिर होने के पूरे साक्ष्य मिले थे।
मैंने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलवा कर मीडिया में ब्यान दे दिया कि हमें वहां मंदिर होने के सभी सबूत मिले थे और बतौर मुस्लिम मैं यह मानता हूँ कि यह जगह हमें हिन्दू भाइयों को दे देनी चाहिए क्यूंकि उनके लिए इस जगह का बहुत महत्व है।
मेरी यह बात कहने के पीछे अयोध्या के उन स्थानीय मुसलमानों से हुई बातचीत थी जो खुदाई के दौर में मैंने उनसे सुनी थी।
बस मेरे ब्यान देने से बहुत ज्यादा बवंडर हो गया और मुझे विभाग से भी दबाव और प्रताड़ना मिली। मेरे अंदर एक अजीब सी ताकत आ गयी थी और मैं बड़ी वैचारिक जंग को अकेले ही लड़ने को तैयार हो गया था।
लेकिन एक बात बहुत अच्छी हुई कि मीडिया से दूरी बना कर रखने वाले बी बी लाल जी जो हमारे टीम लीडर होते थे ने एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से सारी बात सच सच बताई तो इरफ़ान हबीब एंड पार्टी बौखला गयी लेकिन वो कुछ कर ना सके।
हमारी मूल रिपोर्ट के आधार पर ही राम मंदिर का पूरा केस कोर्ट में चला और रिटायरमेंट के बाद मैं अपने होम टाउन कालीकट में रहने गया तो वहां स्थानीय लोगों ने मेरा विरोध किया और मुझे हमेशा ख़तरा रहता था कि मेरे साथ अनहोनी हो सकती है।
जिसदिन कोर्ट में राममंदिर का फैंसला आया मैंने उससे पहले ही परिवार सहित कालीकट को छोड़ दिया और कुछ दिन बिहार भोपाल और गोवा में अपने पुराने दोस्तों के पास रहा।
फिर करोना आ गया और दो साल बड़े आराम से कटे अभी मैं अपने जीवन से पूरी तरह से संतुष्ट हूँ क्यूंकि मैंने सच्चाई को बोला और सच्चाई का साथ दिया।
हालाँकि मैंने कम्युनिस्ट माइंडसेट के इतिहासकारों के फैलाए झूठ को ही चलने नहीं दिया था लेकिन केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने मुझे कट्टरपंथी लोगों से सुरक्षा प्रदान की और मेरा ख्याल रखा।
उम्र के इस पड़ाव में आकर मैं यह महसूस करता हूँ कि अच्छे बुरे लोग सब जगह होते हैं कोई भी टोटल में पूरी तरह से ठीक नहीं होता है और कोई भी पूरी तरह से गलत नहीं होता है।
मेरे मन में जो मुख्य भाव हैं वो मैं आपको बताता हूँ मैंने इतिहास में बाहर से आने वाले अरब तुर्क और मुस्लिम आक्रान्ताओं के द्वारा भारत भूमि में आकर यहाँ मंदिरों का जो विध्वंस किया उसकी टीस मेरे मन में भी है और मैं आर्कियोलोजी का छात्र होने की वजह से मानता हूँ कि मैं एक मुस्लिम हो कर पूर्व काल में किये गए पापों का प्रायश्चित कर सकता हूँ।
मैंने इसी भाव को मन में रख कर अपने पूरे कार्यकाल में सौ से ज्यादा लुप्त मंदिरों को खुदाई से निकाल कर उनका पुनर्निर्माण करवाया है ।
मेरे जैसे करोड़ों श्रीराम मंदिर की ख़ुशी मनाने वाले सभी लोगों को यह बात हमेशा हमेशा याद रखनी चाहिए कि पांच सौ साल का संघर्ष कभी भी सफल ना होता यदि के.के. मुहम्मद अपना फर्ज ईमानदारी से ना निभाता।
मैं यह महसूस करता हूँ कि हम भारतवासी बेहद सौभाग्यशाली हैं कि हर मुश्किल से मुश्किल दौर में हमें ऐसे महान लोगों की कहानियां मिल जाती हैं और हमारा मानवता पर भरोसा कायम रहता है।
राम मन्दिर पुन:निर्माण को मैं एक बड़ी ऐतिहासिक घटना मानता हूँ। 22 जनवरी 2024 को सनातन को सर लग जायेगा। मेरे कान हर दम खुले रहते हैं उन सच्ची और पक्की घटनाओं व्यक्तियों के बारे में जानने समझने बाबत जिन्होंने इस पूरे प्रकरण में अपना योगदान दिया।
के के मुहम्मद साहब का एहसान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।