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राजपाल माखनी और जीवन शैली के सीक्रेटस

इस जगत में सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली यदि कोई चीज है तो वो है हमारा शरीर लेकिन मैं खुद ही इसका ध्यान नहीं रख पाया हूँ इस बात कि समझ मुझे सरदार राजपाल माखनी जी का अनुभव सुनकर ज्यादा बेहतर तरीके से आई है

नाभा पटियाला निवासी सरदार राजपाल माखनी साहब ने अपनी टिपिकल मोस्ट कॉमन जीवन शैली के चलते एकसमय अपने शरीर को इतना खराब कर लिया था कि डॉक्टर्स नें उनकी एक आँख और आधे शरीर को  ऑलमोस्ट डेड घोषित कर दिया था

राजपाल माखनी जी एक सुलझी समझ के जीव हैं और जो सवाल उनके आगे खड़ा होता है तो उसे वो बड़े ही तरीके से एड्रेस करने के लिए जाने जाते हैं इससे पहले वो खेती के रहस्य से पर्दा उठा चुके थे उन्होंने हमें दिखाया कि कैसे सिर्फ मिटटी पर काम करके खेती को ऑटोमेशन के mode में डाला जा सकता है और अच्छी भरपूर फसलें ली जा सकती हैं जिन दिनों वे खेती के रहस्यों से पर्दा उठा रहे थे मैं यदाकदा उनके विचार तंत्र के दर्शन कर पाता था और मैं यह देख रहा था कि कैसे वो परत दर परत अपने प्रक्टिकल अनुभवों से सीख रहे थे और फिर एक दिन उन्होंने नाभा के फोकल पॉइंट में अपने इंडस्ट्रियल प्लाट को उखाड़ कर खेत में बदल डाला और लॉक डाउन के दौरान लगभग सत्तर लाख रुपये अपनी जेब से लगाकर एक आईडीएशन सेण्टर को खड़ा किया जहाँ खेती से जुड़े हरेक प्रूफ ऑफ़ कांसेप्ट को बना कर दिखाया गया था और आज वो जगह एक फ़ूड फारेस्ट में तब्दील हो चुकी है यानि न कोई बीज डालना ना पानी देना और ना कोई खाद देनी और ना ही कोई खुरपी चलानी फ़ूड फारेस्ट में भरपूर फल लग रहे हैं और जिसके फोटो और वीडियोस सरदार राजपाल माखनी साहब अपने फेसबुक और यूट्यूब में लगातार डालते ही रहते हैं जिसका लिंक मैं आपको इस पोस्ट को ख़तम करने से पहले जरूर शेयर कर दूंगा

फिर कुछ समय के बाद जब सरदार जी का खेती के रहस्यों से पर्दा उठाने का शोध पूरा हुआ तो उनके शरीर पर शुगर का अटैक हो गया और वो बहुत बुरी कंडीशन में हॉस्पिटलाईज हो गए और सरदार जी बताते हैं कि हॉस्पिटल में डेथ बेड पर लेटने के बाद उनके मन में रौशनी हुई कि ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ और उन्होंने जल्द ही इस बात का निचोड़ निकाल लिया कि जीवन में जिस चीज    का ध्यान ना रखा जाए वोही बिगड़ जाती है और आज उनकी जो यह हालत हुई है वो अपने शरीर का ध्यान ना रखने की वजह से हुई है

उनके शरीर में डॉक्टर्स ने एक चिप लगाईं जो उनके शरीर में हरदम शुगर लेवेल्स को नाप कर उसकी रीडिंग मोबाइल एप्प के माध्यम से दिखाया करती थी और बस यहीं से सरदार राजपाल माखनी जी की वैज्ञानिक बुद्धि शरीर विज्ञान के रहस्यों को समझना शुरु कर दिया और अपने शुगर लेवेल्स को समझने के लिए उन्होंने मेटाबोलिज्म की पढ़ाई चालू की और जैसे जैसे वो पढ़ते और समझते चले गए और उन्होंने अपनी जीवनशैली पर फोकस कर लिया और सबसे पहली बात उन्होंने जो उन्होंने सीखी वो यह थी कि यदि हम ठीक से जीवन जीना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें खुद को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजनी पड़ेगी और यह काम कैसे होगा ? इसके लिए हमें अपने माइंड को ट्रेन करना पड़ेगा

बात बड़ी सिम्पल सी लगती है लेकिन इसमें एक पहाड़ चढ़ने जैसा जोर लगता है दूसरी बात जो उन्होंने अपने लगभग साल भर चले शोध से सीखी वो यह कि ईटिंग ऑफ़ ईटिंग कम से से कम करने पड़ेंगे जो भी खाना हो वो चौबीस घंटे के साइकिल में बस दो या तीन बार में ही खा लेना चाहिए ताकि शरीर को उसे हजम करने का पूरा समय मिल जाए

यह बात पढने सुनने में जितनी आसान लगती है कसम से बहुत मुश्किल है इसे निभाना जब मैंने इसे पहली बार सुना तो मुझे लगा कि इसमें क्या बड़ी बात है लेकिन बस पहले दिन ही मैं इसपर टिक पाया और पहले मेरे इवेंट ऑफ़ ईटिंग पांच या छेह हुआ करते थे इसे फॉलो करते करते वो दस से बारह तक हो गए

एक बिस्कुट हो या एक निक्की जई मूंगफली वो मुहं में डाल लिया तो वो एक इवेंट ऑफ़ ईटिंग काउंट हो जाता है और उसको हजम करने के लिए पूरा पाचन तंत्र एक्टिवेट हो जाता है जिसमें शरीर में बहुत सारी क्रियाएं जो पहले से ही चल रही होती हैं उन्हें फिर से रीस्टार्ट होना पड़ जाता है और सारा लोड शरीर के पुर्जों यानि ओर्गान्स पर पड़ जाता है और वो धीरे धीरे मंद पड़ने लगते हैं और फिर एक दिन टें बोल जाती है और बन्दा मेडिकल उद्योग का एक POS यानि पॉइंट ऑफ़ सेल्स बनकर देश के जीडीपी में वृद्धि करने लगता है और इधर घर परिवार का नास हो जाता है  

मेरा यह सवाल कि इवेंट ऑफ़ ईटिंग कम करने में मैं क्यों फेल हो गया इसने मुझे फिर से सरदार राजपाल माखनी जी से चर्चा पर लगा दिया और फिर उन्होंने जो सीक्रेट डिसक्लोज किया तो मेरी आँखे खुली और मेरी समझ में आया कि इस दुनिया को हांक रहे लोगों ने कैसे अपनी ताकत से पूरी दुनिया को भम्बल भूसे में डाल दिया है

सरदार जी ने बताया कि हमारे शरीर के पाचन तंत्र में दो बड़े इम्पोर्टेन्ट सेंसर होते हैं एक जो पेट से जुड़ा होता है जिससे हमें यह पता चलता है कि कितना खाना पेट में आ चुका है और इससे ज्यादा नहीं आ सकता है और पेट का सेंसर दिमाग को सिग्नल देता है कि भाई बस कर और हम फ़तेह बुला देते हैं हो गया खाना

दूसरा सेंसर हमारी आँतों में होता है जो सिर्फ यह चेक करता है कि खाने में कितना न्यूट्रीशन यानि पोषण आया है यदि पोषण पूरा है तो वो जल्दी सिग्नल भेज देता है और हम कम खाने पर ही तृप्ति महसूस करते हैं और खाना बंद कर देते हैं

लेकिन यदि पोषण खाने में कम है तो हम और एंड और खाना खाते रहते हैं हमारी तृप्ति बस कुछ देर के लिए ही होती है जब खाना पेट से आगे आँतों में सरकता है पेट में जगह बनती है और आँतों वाला सेंसर पेट को और माइंड को सिग्नल भेजता है कि पोषण कम है और माल भेजो और हमारा फिर से खाने का मन करने लगता है और हमारे इवेंट ऑफ़ ईटिंग बढ़ जाते हैं और फिर सारे शरीर में तत्वों का बैलेंस इतना खराब हो जाता है कि हमें कुछ समझ में ही नहीं आता

अब यहाँ एक बात ऐसी है जिसका जिक्र होना बहुत जरूरी है दुनिया को हांकने वाले लोगों ने बड़ी ही चालाकी से हमें इस चक्की में पीसने के लिए फंसाया है हम कहीं से भी खाना ले आयें बेशक हम उसे अपने खेत में अपने हाथों से उगा लें उसमें हमें पोषण कितना मिलेगा इसबात का कण्ट्रोल वो पहले ही कर चुके हैं

सभी बीजों में उत्पादकता बढाने के नाम पर छेड़छाड़ करके उसमें से पोषण प्रोफाइल को इंजिनीयर कर दिया गया है खाते रहो पेट भर भर के आँतों वाला सेंसर तो हमेशा कम्पार्टमेंट ही बतायेगा और हम इवेंट ऑफ़ ईटिंग अपने कभी कम नहीं कर पाएंगे धक्के से यदि कर भी लिए तो बिना पोषण के हमारा नास होना तय है

इसीलिए आज खेतों में दिनरात मेहनत करने वाले किसान मजदूर भी उन्हीं रोगों के शिकार हैं जो शहर वालों को हो रखे हैं व्यवस्था नें उगाने से लेकर बेचने तक के पूरे सिस्टम में पूरी तरह से सेंधमारी कर ली है मानव सभ्यता ने अपने हज़ारों सालों के रिसर्च से जो परम्परागत बीज बैंक बनाये थे उन्हें दुनिया को हांकने वालों ने लूट कर अपनी सत्ता को बनाये रखने वाले बीजों से बदल दिया है मैं कृषि फ़ूड और कानून का छात्र हूँ तो मैं इस चेन को जानता हूँ कैसे सन 1950 से भारत के लोग अंतर्राष्ट्रीय संधियों और कानूनों के जरिये बांधे गए और आज एक बड़े क्राइसिस को फेस कर रहे हैं

दुनिया को हांकने वालों के तमाम औद्योगिक प्रयासों के बावजूद अभी भी कुछ संभावनाएं शेष हैं जिन्हें वो समाप्त नहीं कर सके और वहीँ से उम्मीद की  किरण मुझे   दिखाई देती हैं

सरदार राजपाल माखनी जी आजकल अपना जीवन अपने शोध को जन जन तक पहुंचाने के लिए समर्पित कर चुके हैं और वो अपनी प्रेजेंटेशन और अपने प्रोजेक्टर के साथ जहाँ उनको मौका मिलता है वहां पहुँच कर अपने अनुभव सुनाते हैं और हमारे मन में जीवन के प्रति लालसा जागृत करते हैं उन्हें सुनने और देखने के लिए उनके यू ट्यूब और फेसबुक चैनल के लिंक नीचे दे रहा हूँ आप अपनी सुविधानुसार चेक कर सकते हैं और सम्पर्क भी कर सकते हैं

Youtube

https://www.youtube.com/@rajpalmakhni3336

Facebook

मेरे से उनका नम्बर मत मांगिएगा क्यूंकि बात हो पायेगी या नहीं इस बात की गारंटी नहीं है लेकिन आप सोशल मीडिया से उनसे सम्पर्क कर सकते हैं अपने मोहल्ले , अपने कार्यालय में उन्हें अपनी बात कहने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं

बातें बहुत सारी हैं करने के लिए धीरे धीरे जो जो समझ में आयेगा आपसे शेयर करते रहूँगा

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