
पंजाब के देहातों में लोग बड़े जिगरे वाले हैं। सुबह नौ बजे ड्यूटी जाने से पहले घरेलू काम काज की मर्यादा निभा कर शाम को दफ्तर से लौट कर फिर से खेत और पशुओं में खो जाना एक सोहणा शग़ल माना जाता है। हमारे लिए ये एक मुश्किल काम हो सकता है लेकिन इनके लिए एक रूटीन एक्टिविटी है।
दिल्ली में बैठ को जो मर्जी बोले जाओ उड़ता पंजाब आदि आदि। पंजाब के अंदर उतर कर देखेंगे तो सजदा पंजाब गजदा पंजाब ते गाता पंजाब नचदा ते वसदा पंजाब है।
कल जैसे ही बस से धनौला बस स्टैंड पर उतरा तो राजेन्द्र सिंह जी और उनका बेटा बस स्टैंड पर खड़े हुए थे और मेरे हाथ से बैग राजेन्द्र जी ने ले लिया मैंने बहुत निवेदन किया के ज़नाब आप बहुत सीनियर हैं ये क्या कर रहे हैं, तो राजेन्द्र जी ने मुझे प्यार से झिड़क दिया और कहा के ऍह साड़े पंजाब दा रिवाज हेगा।
ईंब के बताऊं भाई, मैं भी चल दिया उनके पीछे पीछे, पंजाब के देहात में बहुत काम है देखने करने को। पंजाब को समझने के लिये ज्यादा सोच विचार की जरूरत नही है मोटे दिमाग से भी पंजाब का अलग फ्लेवर महसूस किया जा सकता है। वापिसी बस में चढ़ गया हूँ दो ढाई घण्टे में ज़िरकपुर पहुंच जाऊंगा।