डॉ सुधीर कोहड़ा जी जो हमारे बैच के सुपर सीनियर थे कम से कम 6 साल आगे थे से हमारे बैच के बालकों से पक्की दोस्ती ऐसे अचानक से ही नही हो गयी थी इसके पीछे एक पत्थरों की बरसात वाली घटना घटी थी।
डॉ सुधीर कोहड़ा जी का घर हिसार शहर में होने के बावजूद उन्होंने हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल होस्टल में एक कमरा लिया हुआ था जहां वो अपनी पढ़ाई के साथ साथ फूल पत्तियों से नेचुरल कलर्स बनाया करते थे और उनसे ग्रीटिंग्स कार्ड्स बना कर उन्हें बेच कर पैसे एकत्र किया करते थे और वो पैसे हमारे जैसे जैसे स्टूडेंट्स को खाने पिलाने पर खर्च कर दिया करते थे।
एक दिन साल 1998 में हमने डॉ साहब को वृंदावन होस्टल नम्बर 2 में डिनर पर इनवाइट किया और फिर उनको हम विश्वविधालय की सीमा यानि गेट नम्बर चार तक छोड़ने के लिए इवनिंग वाक पर चल पड़े, डॉ साहब- की साईकिल उनके पास थी सभी पैदल पैदल बातें करते हुए चल रहे थे।
डॉ साहब हद दर्जे के स्कॉलर व्यक्ति थे तो बातें ऐसे शुरू हुई कि चार नम्बर गेट आ गया खत्म नही हुई तो हम वहां से आगे उनको घर (10 C फ्रेंड्स कॉलोनी हिसार) तो छोड़ने का मूड बना कर चल पड़े। जब उनके घर पहुंचे तो ग्यारह बज चुके थे लेकिन हमारी बातें अभी खत्म नही हुई थी तो वो साईकिल घर मे खड़ी करके अंदर बता कर बाहर आ गए।
डॉ कोहड़ा के पिता जी इन सब हरकतों से गुस्सा किया करते थे तो हम वहां से हट कर गलियों में घूमने लगे। बातें इतनी रोचक थी कि हम मोह छोड़ न पा रहे थे। वहीं एक प्लाट खाली पड़ा था हम उस प्लाट में बैठ कर गोल दारा बना कर बैठ गए और बातें कर रहे थे।
रात का कोई डेढ़ बजा होगा हम सभी बेफिक्र थे लेकिन बीच बीच मे कोई ना कोई हंसी की बात हो जाती तो दबी दबी हंसी हंस भी लिया करते।
उस रात आधा चाँद निकला हुआ था और बादल भी थे सो अंधेरे और रोशनी का कंट्रास्ट पल पल बदल रहा था।
उस प्लाट के एक कोने पर घर था जहां छत पर कोई परिवार सोया हुआ होगा हमें कोई अंदाजा नही था।
सोए हुए परिवार में से किसी की नींद टूटी होगी और उसने ऊपर से हमने प्लाट में गोला बना कर बैठे हुए देखा होगा तो राम जाने उसके मन मे आया होगा कि कोई कोई गिरोह है जो वारदात की प्लानिंग कर रहा है।
उसने हमसे पूछने की बजाए एक मार्बल की छोटी सी स्लेट निशाना लगा कर हमारी और उछाल दी जो ठीक हमारे सामने गोले के बीच मे गिरी।
हम बिल्कुल डर गए और सभी समझ गए कि यदि यह स्लेट किसी को लग जाती तो कितना नुकसान होता।
इस स्लेट ने एक दम से हमारे अंदर का बंदर जागृत कर दिया और हमने देखा प्लाट के एक कोने में कुछ रोडे पड़े थे और बिजली की गति से हमने वो रोड़े उठा लिए।
फिर हम उस मकान की ओर देखने लगे जहां से वो स्लेट आयी थी, एक कहावत है ना कि चोर या खूनी अपराध करने के बाद वापिस उस जगह पर दोबारा जरूर आता है।
पत्थर हम सभी के हाथ मे थे और डॉ कोहड़ा हमें वहां से हटाने के लिए हमें खींच रहे थे लेकिन हमारे अंदर का बंदर पूरे चार्ज में था बस वहीं मकान की छत पर खड़ी दीवार के पीछे से एक सिर जैसी आकृति उभरी हमारी पोजिशन देखने के लिए।
बस सभी बंदरों से पत्थर उसी और उछाल दिए, छत पर अन्य लोग भी सोए हुए थे किस को कौन सा पत्थर लगा हम मूर्खों को बाद में ख्याल आया।
बस वहां चीख पुकार मच गई और हम सारे इतना डरे के भाग खड़े हुए सीधे होस्टल की तरफ़। हमें बेतहाशा भागता देख फ्रेंड्स कालोनी की गलियों के बेताज बादशाह भी हमारे पीछे भौं भौं करते दौड़े और उन्होंने सफर जल्दी तय करवा दिया।
आधे रास्ते को तय करने के बाद जब हम इक्कठे हुए तो पता चला कि डॉ कोहड़ा भी हमारे पीछे पीछे आ रहे हैं।
बस किसी तरह डॉ साहब हमें डांटते डांटते होस्टल तक ले आये और फिर अगले तीन चार दिनों तक हमारे साथ हमारे होस्टल में ही रहे।
जिस परिवार पर ये पत्थर पड़े थे सुबह उन्हें पता चल गया कि डॉ सुधीर कोहड़ा के साथ आये लड़कों के काम हैं बड़ी मुश्किल से डॉ साहब के पिता जी ने मसला संभाला लेकिन जब उस व्यक्ति ने यह बात बताई की पहला पत्थर उसी ने मारा था तो सबने उसी को कसूरवार ठहराया।
एक दिन के बाद अखबार में फोटो छपी तो पूरा परिवार बुगला बना एक साथ नज़र आया। पहले तो हमें बड़ा डर लगा, फिर बहुत बुरा भी लगा
लेकिन बाद में यह भी पता लगा कि अखबार में।फोटो छपवाने के लिए कुछ ज्यादा ही पट्टियां बांधी गयी थी, पत्थरों की इस बरसात ने डॉ सुधीर कोहड़ा के साथ हमारी दोस्ती गाढ़ी करवा दी थी।
फिर एक दिन डॉ साहब हम सभी को अपने घर लेकर गए डांट पिलवाने और फिर शानदार खाना भी खिलवाया।
Honey Bee Network ऐसे अचानक से ही हमारे दिलों में इंस्टाल नही हो गया इसमें डॉ सुधीर कोहड़ा जी की सच्चाई और जीवन के प्रति उच्च मूल्य शामिल रहे हैं।
आज जब मैं अतीत को देखता हूँ तो महसूस होता है कि डॉ सुधीर कोहड़ा जी का बड़ा कर्ज है हम सभी के ऊपर उन्होंने जितना हमारे लिए किया हम अपने जूनियर्स के लिए कुछ ख़ास नही कर रहे हैं।
लेकिन हमें करना तो चाहिए