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मास्टर पंजाब सिंह पूनिया जी सातरोड हिसार हरियाणा वाले

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मास्टर पंजाब सिंह पूनिया जी के सानिध्य में

दफ्तर के काम से हिसार ज़िल के सातरोड पिंड में जाना हुआ और वहां मुझे बातों ही बातों में 78 वर्षीय मास्टर पंजाब् सिंह पूनिया के मालूम चला और मैंने छोटे भाई Vikas Hariyanvi Satrod जी से निवेदन किया कि मुझे मास्टर जी से मिलवाओ।

गांव सातरोड की पुरानी तंग गलियों से गुजरते गुजरते हम मास्टर जी के नोहरे में पहुंचे तो मास्टर जी काम मे लगे थे और मैंने अपना थोड़ा सा परिचय दिया लेकिन मास्टर जी समझ चुके थे के बन्दा विकास के साथ आया है तो इसे इतिहास में रुचि है।

मास्टर जी सातरोड गांव के इतिहास को महमूद गजनवी के समय से सहेजे हुए हैं और इनके पास खेतों से निकले मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां और तमाम फोटोग्राफ्स हैं जो इन्होंने अपने जीवन भर अपने संसाधनों से डॉक्यूमेंट करते रहे हैं।

मास्टर जी बताते हैं सातरोड गांव क्रांतिकारियों और शहीदों का गांव रहा है यहां समस्त जातियों का बेजोड़ भाईचारा था। गांव के लाला हरदेव सहाय जाने माने शख्स हुए हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर काम किया है जो 33 वर्ष की आयु में सन्यासी वानप्रस्थी हो गए थे औरगांव में सुभाषचंद्र बोस को और नेहरू जी को लेकर आये थे।

आज जो आत्मनिर्भर भारत की बातें हो थी हैं उस जमाने मे लाला जी ने मॉडल बना कर दिखाया था जिसमें स्कूल के साथ गौशाला होती थी जिसमे सब बच्चे गौपालन करते थे और गायों का दूध पिया करते थे।

62 स्कूल ऐसे स्थापित किये जो ऑफ द रुट थे जहां CID की नज़र नही पड़ सकती थी और राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत मानव संसाधन का निर्माण संभव था।

मास्टर पंजाब् सिंघ पूनिया जी भी याद करते हुए बताते हैं कि वे भी ऐसे ही स्कूल में पढ़ कर कामयाब हुए है और जब 1962 में लाला जी ने देह त्यागी तो उस दिन को याद करते हुए बताते हैं कि पूरा गांव रोया था और पानी भरती हुई महिलाएं अपना काम छोड़ कर शमशान भूमि में पहुंच गई थी और गांव के सभी लोगों ने उनकी जलती हुई चिता के सात सात फेरे लगाए थे जो सिर्फ गोत्री लोगों का अधिकार होता है।

इसका भाव यह था कि गांव का हरेक परिवार उन्हें अपना सदस्य मानता था।

गांव में क्रांतिकारियों को संरक्षण देने के लिए लाला मामन चंद ने एक सीक्रेट कोड़ प्रणाली को विकसित किया था जिसके तहत बणी में छिपे क्रांतिकारियों को भोजन और धुले हुए वस्त्र उपलब्ध कराए जाने की परंपरा था।

मास्टर पंजाब् सिंघ पूनिया जी आज 78 वर्ष के हैं और स्वयं को लाला हरदेव सहाय जी का वैचारिक पुत्र मानते हैं और उनकी पूरी विरासत को सहेजे हुए हैं।

उनसे जुड़ी हरेक बात हरेक स्मृति को सहेजे हुए हैं। मैंने आज खूब फोटो खींचे कई सारे वीडियो बनाये और आज जो सबसे एंडी घटना मेरे साथ घटी वो यह थी जब मैं चलने लगा तो मास्टर पंजाब् सिंह पूनिया जी मेरे पास आये और मुझे अपने पर्स के निकाल कर 100 रुपये का नोट भेंट किया और कहा कि यह नेग है और तुम्हें लेना पड़ेगा।

मेरे सर पर हाथ रखा और कहा कि इतिहास को सहेजने की जिम्मेदारी में आपका आना और मेरे काम मे रुचि लेना यह इंगित करता है कि तुम भी मेरी राह के राही हो और यह नेग देकर मैं तुम्हारे से एक जिम्मेवारी का रिश्ता जोड़ रहा हूँ।

मैं सातरोड़ में घुसा तो खाली हाथ था लेकिन मास्टर पंजाब् सिंघ पूनिया जी ने मुझे हर तरह से बना कर रवाना किया।

मास्टर जी का कर्तव्यबोध और उनकी भावना हिमालय पर्वत के समान है, उनके काम को मैं पचास पोस्टों में भी नही समेट सकता हूँ।

जिस तरीके से उन्होंने अपने जीवन मे काम किया है वो अनुकरणीय है। कसम से ऐसे महान पुण्यात्माओं के दर्शन करना ही हमारे जीवन का फ़्यूएल हैं।

मैं आगे भी मास्टर जी के कोष में मिली बातों घटनाओं किरदारों का जिक्र आगे करता रहूंगा।

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