मनुस्मृति दहन दिवस की ऐतिहासिक प्रासंगिकता

50 / 100

25 दिसम्बर को मनुसमृति दहन दिवस भी देश में आजकल मनाया जाने लगा है और सोशल मीडिया के प्रचलन के साथ साथ यह भी कुछ लोगों के लिए पर्व के रूप में अब देखा जाने लगा है।

मैं अठ्ठाईस तीस साल का हो गया था मैंने कभी मनुस्मृति का नाम तक नहीं सुना था जब कानून की पढ़ाई शुरू की तो जस्टिस मार्कंडेय काटजू का लिखा पेपर ANCIENT INDIAN JURISPRUDENCE पढ़ा

तो श्रुति और स्मृति का कांसेप्ट पल्ले पड़ा और अनेक समृतियों याग्य्वाल्लाक्य समृति , विष्णु समृति , नारद समृति , पराशर समृति, अपस्ताम्भा समृति , वशिष्ठ समृति गौतम समृति के साथ मनुस्मृति का भी मुझे पता चला।

लेकिन मनुसमृति मेरे हाथ में पकड़ाई सरदार राजपाल माखनी जी ने उस वक़्त में 44 साल का था और इसके साथ ही मेरे हाथ में उन्होंने एक और पुस्तक भी पकड़ाई एनहिलेशन ऑफ़ कास्ट्स बाई डॉ बी आर आंबेडकर।

पढ़ी मैंने फिर भी नहीं क्यूंकि मैं कभी भी एक सीरियस रीडर हूँ नहीं मेरी जिज्ञासाएं होती हैं और किताबे में हमेशा टुकड़ों टुकड़ों में ही पढ़ पाता हूँ।

अब इसी साल पच्चीस दिसम्बर को जैसे ही मनुसमृति दहन दिवस मनाये जाने के फोटोज मुझे सोशल मीडिया प्राप्त हुए तो तत्काल क्युरोसिटी के कीड़े एक्टिवेट हो गए और मैंने एनहिलेशन ऑफ़ कास्ट्स पुस्तक निकाल कर टेबल पर रख ली।

पढ़ने से पहले मैंने फोन लगाया परम मित्र भाई नवीन रमण जी को और उनसे समझने का प्रयास किया कि बाबा साहेब ने मनुसमृति क्यों जलाई थी उन्होंने बड़े साधारण शब्दों में बात बताई कि अंग्रेज सभी धर्म मजहब पंथ वालों के लिए उनकी पवित्र किताबों में वर्णित सोर्सेज ऑफ़ लॉ के मुताबिक़ कानून बनाना चाहते थे और एकेश्वरवाद की राह पर चलने वालों के लिए उनकी एक एक किताब थी जिसे आधार पर वो कानून बनाना चाह रहे थे।

हिन्दुओं का केस अलग था क्यूंकि यहाँ खिलारा बहुत था और हरेक व्यक्ति के स्वभाव और जीने की तरीके के मुताबिक़ देवी देवता भी थे लेकिन अपने देवी देवताओं को लेकर भी लोग ज्यादा कट्टर नहीं थे एक दुसरे के प्रति सहज ही रहते थे।

हिन्दुओं के कानून कैसे बनाये जाएँ इसके लिए भी दुनिया भर के स्त्रोत थे उस वक़्त के प्रशासनिक अधिकारी मनुसमृति को ठीक समझ रहे थे के इसके आधार पर हम हिन्दू लॉ का स्त्रोत बना लें।

जैसे ही यह बात बाबा साहब को पता चली तो उन्होंने 24 दिसंबर 1927 को बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर जी ने महाड में द्वितीय डेप्रेसेड क्लास कांफ्रेंस के अवसर का लाभ उठाते हुए मनुसमृति का दहन करके उस वक़त के ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारियों को यह सन्देश दिया था कि हिन्दुओं का बहुत बड़ा वर्ग उनकी इस सोच से सहमत नहीं है और वो खबरदार हो जाएँ।

मैंने नवीन भाई की बात तो सुन ली लेकिन मुझे इसका कोई डोक्युमेंटरी एवीडेंस चाहिए था।

थोड़ी देर के बाद मैंने मेरे सीनियर परम आदरणीय एडवोकेट रविन्द्र ढुल सर को फोन किया (जिन्होंने अपनी कानूनी समझबूझ,जस्बे और जुडिशियल ऐक्टिविज्म से हरियाणा के जलने से बचाया था) और पूछा कि सर मनुसमृति का आधुनिक हिन्दू लॉ पर क्या प्रभाव है?

क्या कोई कानून ऐसे हैं जिनका स्त्रोत मनुसमृति है उन्होंने इस बात को सिरे से नकार दिया और कहा कि मुझे नहीं लगता कि वर्तमान के दौर में कोई भी कानून ऐसा है जिसका सोर्स मनुसमृति से निकल कर आता हो।

फिर उन्होंने एक जनरल बात बताई कि उत्तर भारत में जाट मानव समूह बड़ी संख्या में निवास करता है और जाटों के व्यवाहर में और परम्पराओं में मनुसमृति कोई भी रिफरेन्स नहीं है।

तुरंत मैंने उत्तर से मध्य भारत को स्कैन मारा और पाया कि यादवों का फैलाव भी समस्त उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक है उनमें भी मनुस्मृति का कोई ख़ास महत्व नहीं है।

हिंदुओं के कितने ही समाज ऐसे हैं जिनमें मेरी पहुँच उनके घरों तक है जैसे बिश्नोई पंथ, आर्य समाजी, जिनका कभी भी मनुसमृति से कोई लेना देना नहीं रहा।

मैं खुद जिस समाज से आता हूँ वहाँ भी मनुसमृति का कोई भी रेफरन्स मान्य नहीं है।

अब मैंने नवीन भाई और रविन्द्र सर दोनों की बातों को कनेक्ट किया तो समझ में यह बात आई कि ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारी चाह रहे थे कि हम हिन्दुओं के लिए कानून मनुस्मृति को आधार बना कर बना दें लेकिन बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर जी ने मनुसमृति का दहन करके उन्हें यह सन्देश दिया कि यह नहीं चलेगा।

अंग्रेज वहीं रुक गये और उन्होंने हिन्दुओं के लिए ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जैसा उन्होंने
The Muslim Personal Law (Shariat) Application Act, 1937 में मुसलमान भाईयों के लिए बना दिया।

बाबा साहेब चूँकि सारे गुणा भाग और समीकरणों को समझते थे इसीलिए उन्होंने अंग्रेजों को रोक दिया अन्यथा हिन्दुओं के लिए भी उसीदौर में एक ऐसा एक्ट आ जाता और समस्त हिन्दू समाज पर एक नई मुसीबत और टूट पड़ती।

अब मुझे बाबा साहेब के लेक्चर में से कोई डॉक्यूमेंटरी एवीडेंस की आवश्कता थी सो मैंने पन्ने पलटने शुरू किये और स्कैन मारना चालू किया बस पेज नम्बर 269 पर मैंने मनुस्मृति को पकड़ लिया और रीडिंग लगाईं तो नीचे से पांचवी लाइन में मुझे वो बात मिल गई जिसने सारी बात को खोल कर धर दिया।

बाबा साहेब लिखते हैं कि British Adminstrators depended on Dharmashastra such as the Manusamriti to develop a legal system for India, thus subjecting the Hindu population as a whole Brahmnical legal code.

अब बात खुल गयी थी कि बाबा साहेब जी ने 24 दिसम्बर 1927 को मनुस्मृति दहन करके मूर्ख और शातिर अंग्रेजों को वृहद् हिन्दू समाज को खड्डे में डाले जाने से बचा लिया था।

उन्होंने दहन को क्यों चुना वो कोई और तरीका भी चुन सकते थे इस विषय में मेरा मानना है कि दहन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका असर बहुत दूर दूर तक जाता है जैसे पांच ग्राम मिर्च को यदि अंगारे पर रख दिया जाये तो पचास मीटर तक मिर्च अपने होने का एहसास करवा देती है

यज हवन में भी दहन विधा का प्रयोग होता है समिधा जिसमें विभिन्न जड़ी बूटियाँ मिश्रित रहती हैं को अग्नि और मंत्रोचार से वातावरण में रीलीज किया जाता है जिसका असर आधुनिक वैज्ञानिक मानदंडों पर खरा साबित किया जा चुका है

बाबा साहेब ने मनुस्मृति को दहन करते समय जो मेसेज दिया वो सीधे वहां पहुँच गया जहाँ वो भेजना चाहते थे और ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारीयों को समझ में आ गया कि यह दिशा सही नहीं है।

होलिका दहन, रावण दहन, विदेशी समान का दहन और बाबा साहेब जी द्वारा मनुसमृति दहन के अंदर मूल भाव एक ही है ।

बातें और भी हैं जो इस विषय में आपसे शेयर की जा सकती हैं लेकिन शब्दों की मर्यादा बना कर रखना जरूरी है, वैसे भी मेरा खर्चा बहुत खुला है आलरेडी।

समस्त सनातन समाज खड्डे में गिरने से बचाने के लिए बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर जी को शत शत प्रणाम एंड सभी को राम राम जी।

साथियों आखरत बात यह है कि ये देश हमने बनाना है डबोना नहीं है