एक लाला राजकुमार अग्रवाल जी हैं जो जींद में रहते हैं मेरी उनसे कभी आमने सामने मुलाकात नहीं हुई हैं लेकिन मैं उनसे स्वर्गीय लाला हरदेव सहाय जी के माध्यम से जुड़ा हूँ।
आप में से ज्यादातर लोगों ने कभी लाला हरदेव सहाय जी का नाम नहीं सुना होगा साल 2021 के तीन अगस्त तक मैंने भी कभीं नहीं सुना था और अचानक एक दिन मेरा दफ्तर के काम से जिला हिसार के पिंड छोटी सातरोड जाना हुआ। वहां रहते हैं हरियाणवी लोक संस्कृति के उभरते हुए सितारे भाई विकास सातरोड़ जी और मैं सीधे उन्हीं के पास पहुंचा तो बस बातों ही बातों में जिक्र चल पड़ा मास्टर पंजाब सिंघ जी पूनिया का जो गाँव छोटी सातरोड़ के इतिहासकार हैं।
उन्होंने पूरे जीवन अपने संसाधनों से इस इलाके के इतिहास का संकलन किया है। बस थोड़ी ही देर में हम गांव सातरोड की पुरानी तंग गलियों से गुजरते गुजरते हम मास्टर पंजाब सिंघ पूनिया जी के नोहरे में पहुंच गए तो मास्टर जी काम मे लगे थे। मैंने अपना थोड़ा सा परिचय दिया लेकिन मास्टर जी समझ चुके थे के बन्दा विकास के साथ आया है तो इसे इतिहास में रुचि है
मास्टर जी सातरोड गांव के इतिहास को महमूद गजनवी के समय से सहेजे हुए हैं। इनके पास खेतों से निकले मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां और तमाम फोटोग्राफ्स हैं जो इन्होंने अपने जीवन भर अपने संसाधनों से डॉक्यूमेंट करते रहे हैं।
मास्टर जी बताते हैं सातरोड गांव क्रांतिकारियों और शहीदों का गांव रहा है यहां समस्त जातियों का बेजोड़ भाईचारा था। गांव के लाला हरदेव सहाय जाने माने शख्स हुए हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर काम किया है जो 33 वर्ष की आयु में सन्यासी वानप्रस्थी हो गए थे औरगांव में सुभाषचंद्र बोस को और नेहरू जी को लेकर आये थे।
गोरक्षा आन्दोलन के सेनापति लाला हरदेवसहाय जी का जन्म 26 नवम्बर, 1892 को ग्राम सातरोड़ जिला हिसार, हरियाणा में एक बड़े साहूकार लाला मुसद्दीलाल के घर हुआ था। संस्कृत प्रेमी होने के कारण उन्होंने बचपन में ही वेद, उपनिषद, पुराण आदि ग्रन्थ पढ़ डाले थे उन्होंने स्वदेशी व्रत धारण किया था। अतः आजीवन हाथ से बुने सूती वस्त्र ही पहने। आज जो आत्मनिर्भर भारत की बातें हो थी हैं उस जमाने मे लाला जी ने मॉडल बना कर दिखाया था जिसमें स्कूल के साथ गौशाला होती थी जिसमे सब बच्चे गौपालन करते थे और गायों का दूध पिया करते थे।
लाला जी ने 62 स्कूल ऐसे स्थापित किये जो ऑफ द रुट थे जहां CID की नज़र नही पड़ सकती थी और राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत मानव संसाधन का निर्माण संभव था। मास्टर पंजाब् सिंघ पूनिया जी भी याद करते हुए बताते हैं कि वे भी ऐसे ही स्कूल में पढ़ कर कामयाब हुए है।
लाला जी के मन में निर्धनों के प्रति बहुत करुणा थी। उनके पूर्वजों ने स्थानीय किसानों को लाखों रुपया कर्ज दिया था। हजारों एकड़ भूमि उनके पास बंधक थी। लाला जी वह सारा कर्ज माफ कर उन बहियों को ही नष्ट कर दिया, जिससे भविष्य में उनका कोई वंशज भी इसकी दावेदारी न कर सके। भाखड़ा नहर निर्माण के लिए हुए आंदोलन में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।
1939 में हिसार के भीषण अकाल के समय मनुष्यों को ही खाने के लाले पड़े थे, तो ऐसे में गोवंश की सुध कौन लेता ? लोग अपने पशुओं को खुला छोड़कर अपनी प्राणरक्षा के लिए पलायन कर गये। ऐसे में लाला जी ने दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर चारा एकत्र किया और लाखों गोवंश की प्राणरक्षा की। उन्हें अकाल से पीड़ित ग्रामवासियों की भी चिन्ता थी। उन्होंने महिलाओं के लिए सूत कताई केन्द्र स्थापित कर उनकी आय का स्थायी प्रबंध किया।
सभी गोभक्तों का विश्वास था कि देश स्वाधीन होते ही संपूर्ण गोवंश की हत्या पर प्रतिबंध लग जाएगा लेकिन देश आजाद होते ही सरकार ने नये बूचड़खाने खुलवाकर गोमांस का निर्यात प्रारम्भ कर दिया लाला जी ने तब की सरकार को बहुत समझाया पर कोई बात नहीं बनी। लाला जी का विश्वास था कि वनस्पति घी के प्रचलन से शुद्ध घी, दूध और अंततः गोवंश की हानि होगी जो नतीजा आज कि हमारी पीढ़ी भुगत रही हैं उसे लाला जी ने बहुत पहले ही महसूस कर लिया था।
लाला जी ने ‘भारत सेवक समाज’ तथा सरकारी संस्थानों के माध्यम से भी गोसेवा का प्रयास किया। 1954 में उनका सम्पर्क सन्त प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा करपात्री जी महाराज से हुआ। ब्रह्मचारी जी के साथ मिलकर उन्होंने कत्ल के लिए कोलकाता भेजी जा रही गायों को बचाया। इन दोनों के साथ मिलकर लालाजी ने गोरक्षा के लिए नये सिरे से प्रयास प्रारम्भ किये। अब उन्होंने जनजागरण तथा आन्दोलन का मार्ग अपनाया। इस हेतु फरवरी 1955 में प्रयाग कुम्भ में ‘गोहत्या निरोध समिति’ बनाई गयी।
लाला जी ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक देश में पूरी तरह गोहत्या बन्द नहीं हो जायेगी, तब तक मैं चारपाई पर नहीं सोऊंगा तथा पगड़ी नहीं पहनूंगा। उन्होंने आजीवन इस प्रतिज्ञा को निभाया। उन्होंने गाय की उपयोगिता बताने वाली दर्जनों पुस्तके लिखीं। उनकी ‘गाय ही क्यों’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की भूमिका तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने लिखी थी लाला जी के अथक प्रयासों से अनेक राज्यों में गोहत्या-बन्दी कानून बने।
30 सितम्बर, 1962 को गोसेवा हेतु संघर्ष करने वाले इस महान गोभक्त सेनानी का निधन हो गया और उस दिन को याद करते हुए मास्टर पंजाब सिंघ पूनिया जी बताते हैं कि पूरा गांव रोया था और पानी भरती हुई महिलाएं अपना काम छोड़ कर शमशान भूमि में पहुंच गई थी और गांव के सभी लोगों ने उनकी जलती हुई चिता के सात सात फेरे लगाए थे जो सिर्फ गोत्री लोगों का अधिकार होता है। इसका भाव यह था कि गांव का हरेक परिवार उन्हें अपना सदस्य मानता था।
पुराने समय को याद करते हुए मास्टर पंजाब सिंघ पूनिया जी ने बताया कि सातरोड़ गाँव सदा से ही क्रांतिकारियों को संरक्षण देने वाला गाँव रहा है। इसी गाँव में एक लाला मामन चंद जी भी हुए हैं जिन्होंने गांव में क्रांतिकारियों को संरक्षण देने के लिए एक सीक्रेट कोड़ प्रणाली को विकसित किया था जिसके तहत बणी में छिपे क्रांतिकारियों को भोजन और धुले हुए वस्त्र उपलब्ध कराए जाने की परंपरा था। इस सीक्रेट कोड प्रणाली को आजतक कोई भी तोड़ नहीं पाया है।
मास्टर पंजाब् सिंघ पूनिया जी आज 80 वर्ष के हैं और स्वयं को लाला हरदेव सहाय जी का वैचारिक पुत्र मानते हैं और उनकी पूरी विरासत को सहेजे हुए हैं।
कल 19 जुलाई 2023 को लाला हरदेव सहाय जी की पुस्तक गाय ही क्यों का पुनः प्रकाशन विमोचन समारोह पूज्य स्वामी दत्तशरणन्द जी दवारा दिल्ली में होगा। लाला राजकुमार अग्रवाल जी ओर से आपका न्योता है स्थान और समय की जानकारी नीचे दी जा रही है।
समय : दोपहर 2 बजे
स्थान : नरसिंह सेवन सदन , सिटी पार्क होटल के पास पीतमपुरा, दिल्ली
यदि पहुँचने में कोई असुविधा हो तो मोबाइल नंबर 9416249991, 9811994398, 9968197771पर सम्पर्क किया जा सकता है।
लाला राजकुमार अग्रवाल जी महासचिव भारत गोसेवक समाज जो लाला हरदेव सहाय जी के सुपुत्र हैं आज भी अपने सद्प्रयासों से अपने कुल की प्रतिष्ठा के अनुकूल गौमाता का वैभव पुन: भारत भूमि पर लौटाने हेतु प्रयासरत हैं