
वर्टिकल फार्मिंग आज कोई नया सब्जेक्ट बेशक़ होगा लेकिन हरियाणा पंजाब के देहातों में ये आदिकाल से होती आई है। जो बात सबसे बेहतर है वो यह है कि तकनीक के किसी एक पक्ष को इतना हावी नही किया जाता है कि वो त्रास बन जाये।
तकनीक को साधारण सरल और सुघड़ रखना किसानों को बखूबी आता था लेकिन ज्ञान से विमुख करने वाले विज्ञान ने जब से प्रोडक्ट्स एंड सर्विसेज का बफ़े समाज मे प्रस्तुत किया है सब सिस्टम गोलमाल सा हो गया है।
चार बार गुल्ली डंडे की स्प्रे करने के बाद भी किसान कहता है कि गुल्ली डंडा नही मरता। जो काम एक खुर्पी से हो सकता है उसके लिए पांच छह सात जहर के स्प्रे करके किसान हिसाब किताब लगाने ने अक्षम है।
कपूरथला जिले के सरदार ज्ञान सिंह जी ने पराली वाले खेत मे दोहरा छिट्टा मार कर गेहूं बोने की विधि ईज़ाद की है जिसमें गुल्ली डंडे का नामोनिशान भी नही मिलता है।
सौराष्ट्र में मैंने घूम कर देखा है कि खेतों में एक भी खरपतवार मौजूद नही है। पूछने पर मालूम चला कि किसान मिलकर एक लाइन बनाते हैं और खेत मे एक किनारे से दूसरे किनारे की ओर चल देते हैं रास्ते मे मौजूद एक एक खरपतवार को हाथ से निकाल डालते हैं।
खेती का आधार सामूहिकता और कोऑपरेटिव प्रिंसिपल्स हैं जो सामाजिक रीति रिवाजों में निहित हैं।
पंजाब के जिला अबोहर फाजिल्का, गुरदासपुर , जींद हरियाणा में किसानों का आर्थिक संगठन गठित हुआ है जिसके लिए बिजनेस प्लान विकसित करने का प्रोफ़ेशनल आसायनमेन्ट मुझे मिला है।
इसी सिलसिले में अगामी पखवाड़े में अबोहर फाजिल्का जींद और गुरदासपुर की यात्राएं प्रस्तावित हैं।
साथ मे नया क्या देखने सीखने को मिलेगा उसी से उत्साह कायम है