95 वर्षीय हरभजन कौर दी एंटरप्रेन्योरशिप

56 / 100
harbhajan kaur

यह तस्वीर 95 वर्षिय हरभजन कौर की है। अमृतसर के नज़दीक तरनतारन में जन्‍मी हरभजन कौर शादी के बाद अमृतसर, लुधियाना में रही और करीब दस साल पहले पति की मौत के बाद वे कुछ समय से अपनी बेटी रवीना के साथ चंडीगढ़ में रहने लगी।

रवीना जानती थी के माँ का जीवन अपने आखरी पड़ाव पर है। एक शाम भावुक हुई रवीना ने सामने बैठी माँ से पूछा ” ज़िंदगी में मलाल तो नहीं न है आपको, कोई चाहत तो बाकी नहीं है। कहीं आने-जाने या कुछ करने या कोई जगह देखने की इच्छा है तो बता दीजिये।” बिटिया माँ का मन टटोल रही थी। वह चाहती थी के उम्र के इस पड़ाव पर माँ की अगर कोई ख्वाहिश बची है तो वह उसे पूरी कर सके।

परंतु माँ ने जो जवाब दिया उसकी उम्मीद रवीना को बिल्कुल भी नहीं थी। हरभजन कौर ने कहा “बस, एक ही मलाल है मैंने इतनी लंबी उम्र गुज़ार दी और एक पैसा भी नहीं कमाया। ”रवीना स्तब्ध रह गयी। 93 वर्ष की उम्र में माँ पैसे कमाने की इच्छा प्रकट कर रही थी जो असंभव सा जान पड़ता था। परंतु अब तो तीर कमान से निकल चुका था।

माँ की इस ख्वाहिश को पूरा करने का निर्णय कर रवीना ने हरभजन जी से पूछा “इस उम्र में आप क्या कर सकती हैं!” जवाब जैसे तैयार था चेहरे पर आत्मविश्वास से लबरेज़ हरभजन जी बोली “मैं बेसन की बर्फी बना सकती हूँ। घर में धीमी आंच पर भुने बेसन की मेरे हाथ की बर्फी को कोई तो ख़रीददार मिल ही जाएगा ” माँ का जवाब सुनते ही रवीना का गला भर आया। उनका आत्मविश्वास देख रवीना की आंखें छलक उठी।

रवीना ने ऑर्गेनिक बाजार नामक एक संस्थान से सम्पर्क किया और उनसे बेसन की बर्फी की खरीदारी के विषय में बात की। 93 वर्षिय माँ के हाथ की बर्फी जब ऑर्गेनिक बाजार के कर्मचारियों ने चखी तो वह स्वाद और शुद्धता के मुरीद हो गये और माँ को उनका पहला “ऑर्डर” मिल गया। बर्फी बना कर ऑर्गेनिक बाजार में भेजी गई तो बदले में पेमेंट मिली। जब उनकी पहली कमाई को उनके हाथों में रखा गया तो 93 वर्षिय माँ के हाथ कांप उठे।

आंखों से झरते आंसू इस बात की गवाही दे रहे थे के दशकों से दिल में दबी ख्वाहिश पूरी हो गयी थी। परंतु माँ तो माँ है। हरभजन जी ने पैसों को तीन हिस्सों में बांटा और अपनी पहली कमाई अपनी तीनों बेटियों के हाथों में सौंप दी। माँ की इच्छा तो पूरी हो गयी परंतु जिंसने जिंसने माँ के हाथ की बर्फी चखी उसकी ईच्छा दोबारा चखने की हुई। ऑर्डर पर आर्डर आने लगे। हरभजन जी ने भी कमर कस ली। जितना संभव हो सका उतना काम करने लगी। बर्फी का स्वाद चंडीगढ़ वासियों की ज़ुबाँ पर ऐसा बैठा के लोग माँ के हाथ के बने इस मिष्ठान के मुरीद हो गये।

harbhajans

आज माँ के हाथ की बनाई हुई बर्फी एक ब्रैंड बन चुकी है। ब्रैंड का नाम है “Harbhajan’s” और टैगलाइन है ”बचपन की याद आ जाये”। कितनी ख्वाहिशें हैं जो हम सब के सीने में दफन हैं। यह सवाल किसी और से नहीं खुद से पूछने की ज़रूरत है कितनी खव्हिशें हैं जिन्हें पूरा करने के लिये हम उपयुक्त समय का इंतज़ार कर रहे हैं। यह जानते हुये भी के इस क्षणभंगुर जीवन में अगले सेकिंड जीने की गेरंटी नहीं है। 95 वर्षिय अम्मा से कुछ सीखना होगा। बेशक लज़ीज़ बर्फी बनाना ना सीख सकें परंतु दिल के कोने में दबी उन ख्वाहिशों को पूरा करने का जज़्बा और जुनून सीखना होगा।