निब वाले पेन हमारा बचपन और हम

जब हम स्कूल में पढ़ते थे उस स्कूली दौर में निब पैन का चलन जोरों पर था। तब कैमलिन और चेलपार्क की स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी, कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर भी उपयोग करते थे और जिन्होंने भी पैन में स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से भली भांति परिचित होंगे। महीने में दो-तीन बार निब पैन को खोलकर उसे गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी और लगभग सभी को लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है। हर क्लास में एक …

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ये कहाँ आ गए हम

शिव शुक्ल किसी दिन सुबह उठकरइसका जायज़ा लीजियेगा , कि कितने घरों मेंअगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं ? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव,पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़, मुम्बई, कलकत्ता,मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसेबड़े शहरों में जाकर बस गये हैं ? आप एक बार उन गली मोहल्लों सेपैदल निकलिएगा, जहाँ से आपबचपन में स्कूल जाते समय यादोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे. तिरछी नज़रों से झाँकिए हर घर की ओर. आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर,बस किसी-किसी घर के बाहर या खिड़की में आते-जाते लोगों को ताकतेबूढ़े जरूर मिल जायेंगे. आखिर इन सूने …

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मेरा 9/11 वाला अनुभव

सन 2001, सितम्बर 11 को शाम साढ़े पांच बजे अहमदाबाद से आश्रम एक्सप्रेस में बैठा था दिल्ली के लिए , उन दिनों नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के साथ मिलकर उत्तर भारत के देहातों में ग्रामीण आविष्कारकों और परम्परागत ज्ञान धारकों को ढूँढने और उनकी जानकारियों का डेटाबेस बनाने का काम शुरू करने के लिए प्रोफेसर अनिल कुमार गुप्ता जी के साथ प्लान फाइनल करने के बाद ट्रेन में सवार हुआ था | पिछले एक वर्ष में इंडियन आर्गेनिक फ़ूड नईदिल्ली में प्राइवेट नौकरी और दफ्तरी हिसाब किताब जायजा लेने के बाद नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के साथ काम करना ऐसा लग रहा …

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संस्कारों की खेती कैसे की जाती है

सर! मुझे पहचाना?” “कौन?” “सर, मैं आपका स्टूडेंट। 40 साल पहले का “ओह! अच्छा। आजकल ठीक से दिखता नही बेटा और याददाश्त भी कमज़ोर हो गयी है। इसलिए नही पहचान पाया। खैर। आओ, बैठो। क्या करते हो आजकल?” उन्होंने उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा। “सर, मैं भी आपकी ही तरह टीचर बन गया हूँ।” “वाह! यह तो अच्छी बात है लेकिन टीचर की तनख़ाह तो बहुत कम होती है फिर तुम कैसे…?” “सर। जब मैं सातवीं क्लास में था तब हमारी कलास में एक वाक़िआ हुआ था। उस से आपने मुझे बचाया था। मैंने …

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दूब घास दूर्वा दरोब Cynodon_dactylon एक चमत्कारी औषधि

नंद किशोर प्रजापति कानवन चार दिन पहले कुशग्रहणी अमावस्या थी तब हमनें कुश/डाब की चर्चा की थी ,उसके गुणों ओर धार्मिक महत्व को जाना था। आज गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की प्रिय दरोब/दूर्वा का दिन हैं। आज की परिचर्चा में हम दरोब के गुणों को जानने का प्रयास करेंगे। दूर्वे अमृत संपन्ने शत मूले शतांकुरे!शतंम् हरती पापानी शतंम् आयुष्य वर्धिनी!! हे दूर्वा तुम अमृत संपन्न हो.. पाप और रोगो का निवारण करने वाली हो .शत मूल व शतांकुर वाली दुर्वा आपको प्रणाम दूर्वा के अनेक नाम हैं मालवांचल में इसे दरोब नाम से जाना जाता हैं।साथ इसे दूब, अमृता,अनंता, …

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कहाँ से आये ब्राह्मण और सब क्यों उनके पीछे पड़े हैं?

हरि गुप्ता ब्राह्मण ने समाज नहीं बनाया। समाज ने ब्राह्मण बनाया। भारत में किसी साजिश के तहत ये बात स्थापित की गयी है कि ब्राह्मणों ने अपने मुताबिक समाज बनाया और उसके शिखर पर जाकर बैठ गया। ये असत्य और अन्यायपूर्ण कथन है। वास्तविकता ये है कि समाज ने ब्राह्मण बनाया। समाज ने एक संरचना विकसित की जिसमें धर्म को शिखर पर रखा। कला, विद्या और धर्म इन तीनों का सम्यक बंटवारा है भारतीय समाज। कला का अर्थ है हर प्रकार की कला। निर्माण, उद्योग और उत्पादन ये सब कला का अंग हैं। विद्या का अर्थ है परंपरा में संरक्षित …

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जहां अकबर पैदा हुआ और राणा रतन सिंह को फांसी हुई

राजीव पुरोहित मुग़ल जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर का नाम आते ही दिमाग़ में मुगलिया सल्तनत, दीन-ए-इलाही और बीरबल तानसेन मानसिंघ टोडरमल महाराणा परताप के नाम याद आते है ।अगर ये सवाल किया जाए कि अकबर बादशाह का जन्म कहां हुआ था तो कई लोग गूगल पर इसका जवाब तलाशेंगे। अकबर का जन्म उमरकोट में हुआ था।हुमायूं बिहार के अफ़ग़ान गवर्नर शेर ख़ान से लड़ाई हारने के बाद उमरकोट में रहने लगे थे , उस समय उस बेवतन बादशाह के साथ सिर्फ कुछ सवार और उनकी जीवन साथी हमीदा बानो थीं तब उमरकोट के राजपूत शासक परमार ( राणा ) ने हुमायु …

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डॉ अख्लाक्ष प्रताप सिंह एक बेहतरीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले इंसान

दो दशकों में बहुत कुछ बेशक़ बदल जाता है। बस नही बदलता तो वो है सीनियर्स और जूनियर्स का बेशुमार प्यार और रिगार्ड और सीखने जानने बताने कहने सुनने की बेशुमार चाहत। डॉ अख्लाक्ष प्रताप सिंह जी हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में हमारे से इमिजेट सीनियर बैच में थे और मेरी पिछली मुलाक़ात इनसे साल 2000 में बस ऐसे ही चलते फिरते हुई थी। डॉ साहब उस जमाने मे भी बायोकेमिस्ट्री के ठीक ठाक विद्वान हुआ करते थे और इनकी विद्वत्ता इन बीते दो दशकों में कितनी गहराई होगी आप उसका ठीक ठाक अंदाजा लगा ही सकते हैं। फ़ूड केमिस्ट्री, ह्यूमन …

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उपवास का महत्वऔर प्लेसिबो की खोज

डॉक्टर रसेल ट्रॉल यह पहले अमेरिकन एलोपैथिक डॉक्टर थे। सरकारी डॉक्टर होने के नाते वो गांव गांव जाकर बीमार लोगों को दवाइयां देते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि एक महिला बहुत ही गंभीर बीमार है। उन्होंने चेक किया और उनके घर वालों को बताया कि वो महिला 1 हफ्ते से ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकेगी, इसलिए उन्होंने उसे कोई भी दवा नहीं दी। उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया। 15 दिन के बाद डॉक्टर ट्रॉल फिर उसी गांव में विजिट देने गए।तब उन्होंने देखा कि जो महिला 1 हफ्ते के भीतर मरनेवाली थी वो तो जीवित है …

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हमारे कौरव पाण्डव और हमारा महाभारत

जयवीर रावत शास्त्र कहते हैं कि अठारह दिनों के महाभारत युद्ध में उस समय की पुरुष जनसंख्या का 80% सफाया हो गया था। युद्ध के अंत में, संजय कुरुक्षेत्र के उस स्थान पर गए जहां संसार का सबसे महानतम युद्ध हुआ था। उसने इधर-उधर देखा और सोचने लगा कि क्या वास्तव में यहीं युद्ध हुआ था? यदि यहां युद्ध हुआ था तो जहां वो खड़ा है, वहां की जमीन रक्त से सराबोर होनी चाहिए। क्या वो आज उसी जगह पर खड़ा है जहां महान पांडव और कृष्ण खड़े थे? तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने वहां आकर धीमे और शांत स्वर …

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