
माता गुरचरण कौर जी कहती हैं कि मैं चरखा चला कर सूत कातने के साथ साथ अपना दुःख काट लेती हूँ।इस चरखे का महत्व हम न खुद समझ सके और न देश की मुख्य धारा में इसको शामिल कर सके।हमारे गांवों में बसे बढई देवता किस स्तर के सिद्धहस्त और तकनीकी लोग हैं।
इसका पता उनके बनाये हुए यंत्रों को देख कर पता चलता है। हमने अपने पूरे एजुकेशन सिस्टम को सिर्फ नौकरी मांगने वाले बेरोजगार बनाने के हिसाब से क्रिएट किया है।गांधी जी मे चरखा चला कर आत्मिक बल आ जाया करता था लेकिन हमने चरखे का मूल्य नही पाया। आज भी गांव में रहने वाले बढई नौ सौ रुपये में शानदार चरखा बना कर दे देते हैं जो पचास सौ साल कहीं नही जाता है।इन परिवारों में सुघड़ चरखों को देख कर मन मे शांति और संतोष भर जाता है।
खेती विरासत मिशन जैतो पंजाब के संयोजक बाबा Umendra Dutt जी कहते हैं कि हमने किसानों को जैविक कपास उगाने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने देसी बीजों से जैविक कपास उगा कर दिखा दी तो हम नही चाहते थे कि यह उच्च गुणवत्ता वाली कपास हम मंडी में जाया कर दें। के.वी.एम. ने कारीगरों को ढूंढ कर उन्हें वो जैविक कपास दी और फिर त्रिंजन नाम का यह उपक्रम अस्तित्व में आया।
त्रिंजन की कोऑर्डिनेटर Rupsi Garg जी जो अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी बेंगलुरु से एम.एस.डब्ल्यू. करके इसी कार्य को उद्यम बनाने हेतु प्रयासरत हैं जिससे जैविक किसानों और कारीगरों को मिलाकर आगे की राह निकाली जा सके।मुझे चरखा चलाना नही आता है लेकिन फिलहाल के लिए आप मुझे उल्लू का चरखा तो हक से कह ही सकते हैं।