
धरती माँ के आंचल में गंदे केमिकल्स ना डाले जाएं तो धरती माँ बहुत कुछ देती है। यह चित्र उत्तरपूर्व भारत के खेतों का जहाँ रासायनिक जहरों को खेतों में प्रयोग नही किया जाता है। इस चित्र में आप देख सकते हैं कि कितनी बड़ी संख्या में खाने लायक पौष्टिक मशरूम पैदा हुए हैं। लेकिन यही तस्वीर किसी वैज्ञानिक कहे जाने वाले व्यक्ति को दिखा दी जाए तो वो इसे खरपतवार या कोई गंभीर रोग की संज्ञा भी दे सकता है। यही तथाकथित वैज्ञानिक कहलाये जाने वाले लोग सरकारी सहयोग से बहकाते हैं तो किसान बेचारे इनकी बातों में आकर अपना अपनी धरती माँ का और अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य का नाश कर डालते है।

धरती में कवक होता है जिसका नाम होता है माईकोराइजा जो ग्रैमनी फैमिली (गेंहू की प्राजाति) वाले पौधों के चारों और एक जाल बुन लेता है और दूर दूर से न्यूट्रिएंट्स उठा उठा कर अपने नेटवर्क के जरिये पौधों को मुहैया कराता रहता है।
जंगल में सड़क किनारे कौन खाद डाल कर आता है जो पौधे नही सूखते उसका जवाब यही माईकोराईजा है। तथाकथित वैज्ञानिक लोगों को अपनी समझ और शोध से पता था कि जब तक ये माईकोराईजा है तुम्हारी जहर की दुकानें चलेंगी नही।तब इन्होंने स्टोरी चलाई कि बीज को फंगस से खतरा है और एंटीफंगल जहर का लेप जरूरी है। बस फिर क्या था सरकारी फरमान से बीजों पर एंटीफंगल जहर के लेप होने के कानून पास हो गए और बीजों पर लेप चालू हो गया।
माईकोराईजा बीजों से दूर रहने लगे गया। रही सही कसर हर्बीसाइड ने पूरी कर दी और माईकोराईज़ा खेत को नमस्ते करके सड़कों जे किनारे बची जगह पर सिमट गया।किसानों के पौधे न्यूट्रिशन से भूखे मरने लग गए तो केमिकल्स की दुकान चल निकली और खेती घाटे का सौदा हो गयी।
किसानों की मानसिक स्थिति ऐसी हो गयी कि जिस शीशी पर स्पष्ट जहर लिखा हुआ है उसे दवा कह कर उससे खेलने लग गए। इसमें कितना बड़ा साइकोलोजिकल खेल है आप समझ कर देखिये । कल्पना कीजिये एक किसान बाजार से कैमिकल खरीद कर लाता और अपनी परिवार को बताता है कि मैं जहर खरीद कर लाया हूँ और यह जहर फलां जगह पर रखा है। जब प्रयोग करने लगे तो फिर कहे कि मैं खेतों में जहर डालने जा रहा हूँ। अपनी लेबर से भी कहे कि मैं जहर ले आया हूँ तुम इसे खेतों में डाल दो। जहर कहते सुनते ही सभी के हाथ रुकेंगे और वो बड़ी सावधानी और सोच समझ कर जहर डालेंगे।
लेकिन यदि किसान जहर के स्थान पर दवाई शब्द का प्रयोग करता है तो उसका माइंडसेट और हिसाब का हो जाएगा और वो लापरवाह हो जाएगा और जहर के साथ खेलने लग जाएगा। यही धोखा इन्ही तथाकथित वैज्ञानिकों ने देश के किसानो के साथ किया है जो जहर को दवा बोलकर इनके हाथों में पकड़ा दिया है।
हर्बीसाइड्स ने खेतों में से रोजगार खत्म कर दिया और कैंसर डायबिटीज परोक्ष रूप से समाज मे फैलने लग गयी। आज किसान और मजदूर सबसे ज्यादा बीमार जीव हैं।वायरस वाले कोड से प्रोग्राम्ड लोगों का समाज में नकली दबदबा है। ऐसा होता ही है क्योंकि मरे हुए समाज मे किसका दबदबा चलेगा सोचो जरा।फिर भी सत्य तो सत्य ही रहता है आज नही तो कल लोगों के आंदोलित मन मे उभर ही आता है।
सात सालों तक फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून में माईकोराईज़ा विषय पर पीएचडी करने वाले हमारे सीनियर आदरणीय डॉ बलवान सिंह जी के साथ बैठ कर यदि प्लांट न्यूट्रिशन वाला किस्सा छेड़ दिया जाए तो वो रूम टेम्परेचर पर ही उबलने लगते हैं और उनकी उबलाहट में ही आधुनिक समय की सारी समस्याओं का हल साक्षात नज़र आ जाता है। मैं इसका साक्षी हूँ।