पंचकुला से बरवाला रोड पर बुलंद खड़े मशहूर रामगढ़ के किले के बाहर एक नमक की रेहड़ी लगती है जिसे कैथल जिले के निवासी श्रीमान स्वतंत्र कुमार लगाते हैं और बड़े फक्र से बताते हैं के मैं पांचवीं फेल हूँ और मेरी पत्नी एम् ए पास है।
खैर मैंने पूछा के ये व्यापार क्यूँ करते हो
स्वतंत्र ने बताया मैंने बड़े व्यापार किये किसी में मेरा पैसा मार लिया गया कभी समान खराब हो गया।
यह समस्या मैंने एक दिन अपने गाँव के बुजुर्ग से बताई तो उसने कहा भाई तुम्हारे पूरे परिवार का स्वभाव भुरभरा सा है समान के पैसे थारे पै मांगे कोनी जावें और दुनिया उल्टे देवे कोनी।
फिर उन्होंने सुझाव दिया कि सिर्फ नमक का व्यापार ही ऐसा व्यापार है जिसमें कोई पैसे नहीं मार सकता क्यूंकि नमक हरामी की तोहमत कोई लेना नहीं चाहता दुसरे नमक में कीड़े नहीं पड़ते |
सो मैंने पुरानी दिल्ली में घूम घाम कर वो दुकाने खोज निकाली जहाँ नमक की कई वैरायटी उपलब्ध थी और मैंने अपना नमक का छोटा मोटा कारोबार शुरू कर लिया और भगवान् का शुक्र है कि आज मैं अपने घर से दूर रह कर भी अपना परिवार अच्छे से पाल रहा हूँ |
मेरे परिवार के लोगों ने मेरी सफलता को देखते हुए अन्य स्थानों पर येही काम शुरू कर लिया है और वो भी अच्छा ही कर रहे हैं।
हरियाणे की बात करें तो नमक के व्यापार में सेठ चूहीमल जी का नाम आता है। जिन्होंने लक्खी बंजारे के साथ मिलकर नमक का व्यापार किया और बहुत धन दौलत कमाई उनके बनाये तालाब और छतरीयां मेवात जिले के नुहं कसबे में आज भी बड़ी शान से खड़े हैं।
प्राचीनकाल में नमक दुर्लभ था ,काफी मेहनत और खर्च करने पर ही थोडा बहुत मिलता था। इसलिए वह एक बहुमूल्य पदार्ध माना जाता था। सभी देशो में उसकी बहुत प्रतिष्ठा थी।
यूरोप के आदि कवि होमर ने नमक को स्वर्गीय पदार्थ कहकर उसका गुणगान किया है |
महान दार्शनिक प्लेटो ने उसे “देवताओं का प्रिय पदार्थ ” कहा है अरब वाले भी उसको एक दैवी वस्तु मानते थे और खुदा की कसम की तरह नमक की कसम या नमक हाथ में लेकर कसम खाते थे।
हमारे यहाँ भी लोटे में नमक डाल कर कसम खाने और खिलाने का रिवाज था।
हमारे रोहतक शहर में मशहूर गुलाब रेवड़ी वाले के बारे में एक बात सुनी हैं मैंने बुजर्गों से के जब पुराने समय में वो किसी कारीगर को अपने यहाँ लगाते थे तो लोटे में नमक डाल कर ट्रेड सीक्रेट्स आउट ना करने का वचन लेते थे। लंबे समय तक नमक वाली ट्रिक ने काम किया। कारीगर काम छोड़ने के बावजूद रेवड़ी का अपना काम शुरू नहीं करते थे और गुलाब रेवड़ी का कंपिटिटर लंबे समय तक खड़ा नहीं हुआ।
हमारे देश में नमक का इस्तेमाल कई सालों से होता रहा है, माना जाता है 300 साल पहले से ही सिंध और पश्चिमी पंजाब की पहाड़ियों से काफी नमक निकाला जाता था। वहां का सेंधा नमक विख्यात है, जिसे सबसे गुणकारी माना जाता है।
वहीं समुद्री नमक का केंद्र दक्षिण भारत माना जाता है, वहां के लोग समुद्र के पानी को उबालकर नमक निकालते थे। वहीं खारे पानी की कई झीलों, से भी नमक तैयार किया जाता था।
उत्तर प्रदेश में लोनिया जाति के लोग लोना मिट्टी से नमक बनाते थे।यह उनका जातीय व्यवसाय था। अंग्रेजी राज्य से पहले यह देश नमक के मामले में आत्म निर्भर था |
1782 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल में नमक बनाने का ठेका लिया | धीरे धीरे ज्यो ज्यो कम्पनी के प्रभुत्व का विस्तार हुआ ,त्यों त्यों वह इस व्यवसाय को अपनी मुट्ठी में करती गयी | तब अन्य किसी को नमक बनाने का अधिकार नही रह गया | सन 1834 में सरकार ने लोना मिटटी से नमक बनाने पर भी रोक लगा दी थी |
मद्रास, गुजरात, राजस्थान के नमकीन पानी के कुओं से भी काफी मात्रा में नमक तैयार होता है। सेंधा नमक इस समय भारत के केवल हिमाचल प्रदेश के मंडी में ही मिलता है।
70 प्रतिशत नमक समुद्र के पानी से, 25 प्रतिशत कुओं के खारे पानी से, 5 प्रतिशत सांभर आदि झीलों से और 0.06 प्रतिशत खानों से उपलब्ध होता है।
जब अंग्रेज हमारे देश में आये तो उन्होंने नमक के सिस्टम को समझा और नमक पर बड़े ही संगठित तरीके से कब्जा किया और आज भी वह कब्ज़ा बद्दस्तूर नए रूप में जारी है |
अंग्रेज सरकार ने वर्ष 1869-70 में जयपुर और जोधपुर राज से सांभर झील को लीज पर लेने के लिए मुख्य संधियाँ की और वजह बताई कि आगरा और अवध में नमक की आसमान छूती कीमतों पर नियंत्रण किया जायेगा और सांभर झील से वैज्ञानिक तरीके से नमक निकला जायेगा |
वर्ष 1879 में अंग्रेज सरकार ने मेवाड़ ग्वालियर और दूसरी रियासतों के साथ संधियाँ की जिसके तहत पुरानी कस्टम व्यवस्था को हटा कर नयी कस्टम व्यवस्था को लागू किया गया | जगह जगह नमक की चेकिंग के लिए चौकियों की स्थापना की गयी | मुंशी प्रेमचंद का प्रसिद्ध नावल “नमक का दरोगा ” कोई पुलिस का दरोगा नहीं था अपितु नमक का कस्टम अधिकारी था ।
इसी प्रकार के अग्रीमेंट इंदौर भोपाल कोटा और अन्य रियास्तों के साथ वर्ष 1882 में किये गए।
नमक की तस्करी रोकने के लिए एक हेज नामक पौधों की बाड लाहौर से लेकर उडीसा तक एक सीधी लाइन में लगायी गयी जिसके अवशेष डॉ रणबीर सिंह फौगाट जी ने रोहतक ने नजदीक निगाना नामक गाँव में रिपोर्ट किये हैं | हांसी बेरी आदि स्थानों पर भी नमक की चौंकियां इतिहास में दर्ज हैं |
भारत सरकार में एक पद होता है साल्ट कमिश्नर जो ब्रिटिश काल से चलता आ रहा है इसका कार्यलय आज भी जयपुर में स्तिथ है क्यूंकि अंग्रेजों ने जयपुर से ही नमक के कारोबार की शुरुआत की थी।
बहुत थोड़े समय में अंग्रेज सरकार ने राजपुताना , मध्य भारत , पश्चिमी पंजाब में कोहाट , हिमाचल की मंडी रियासत से लेकर पूर्वी भारत और दक्षिणी भारत में नमक के पूरे करोबार पर कब्ज़ा जमा लिया | नमक पर कर बहुत न्यूनतम रखा गया लेकिन यदि सारा टैक्स जोड़ा जाये तो यह एक बहुत बड़ी रकम बनती थी |
मौजूदा दौर में नमक का व्यापार : अंग्रेजों ने बहुत पहले से समाज लिया था के नमक के कारोबार को हमेशा अपने हाथ में रखना है इसके लिए चाहे जो करना पड़े।
आज सरकार की नमक के बारे में जो नीति है उसे USI यानि के यूनिवर्सल साल्ट आयोडिजेशन कहते हैं।
भारत उन कुछ देशों में से एक हैं जिहोने अपने यहाँ नमक में आयोडीन मिलाने का सरकारी कार्यक्रम चलवाया।
सन 1956 में हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में डॉ राम लिंगम जो इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के वैज्ञानिक थे , ने एक अध्यन किया जिसमें स्थानीय निवासियों के दो ग्रुप्स बनाये गये जिसमें कुछ को आयोडीन वाला नमक दिया गया और कुछ को वही पूराना चट्टानी नमक खाने दिया गया और इस अध्यन में यह साबित किया गया कि आयोडीन युक्त नमक खाने से घेंगा ( गोइटर ) रोग नहीं होता है।
ऐसे अध्यन अमरीका यूरोप में पहले फेल हो चुके थे जिनका ब्यौरा इस प्रकार है।
वर्ष 1858 में सबसे पहले फ्रेंच एग्रीकल्चरल बायोकेमिस्ट श्रीमान बौसिनगाल्ट ने सबसे पहले अपने रिसर्च पेपर में जिक्र किया कि अमरीका के कोलंबिया राज्य में कुछ कालोनियों में आयोडीन युक्त नमक खिलाने से गोइटर रोग पूर्णतया समाप्त हो गया है | अमरीकन अथॉरिटीज ने इस दावे की पड़ताल की लेकिन उन्हें कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने इसे ख़ारिज कर दिया।
ऊनीसवी शताब्दी के मध्य में फ्रांस , स्विट्ज़रलैंड , इटली और ऑस्ट्रिया आदि देशों में एक साथ दो वैज्ञानिकों जिनके नाम ग्रेंज और कोस्टल थे ने पूरा जोर लगाया लेकिन वे साबित न कर सके कि आयोडीन युक्त नमक खिलाने से गायटर रोग नहीं होता है।
वर्ष 1898 के आसपास मरीन और किम्बल नामक दो वैज्ञानिकों ने अमरीका के ऑहियो और मिशिगन नामक स्थानों पर फिर से प्रयोग किये और वे साबित करने में कामयाब हो गए और इसके बाद नमक में आयोडीन मिलाने का कार्यक्रम संगठित रूप से चल पड़ा | (शायद सरकारों को अब इसमें भविष्य नज़र आने लग गया था )
1962 में भारत सरकार ने एक प्रोग्राम चलाया जिसका नाम नेशनल गोइटर कण्ट्रोल प्रोग्राम था इसे पहले उन जिलों में चलाया गया जहाँ गोइटर रोग का प्रकोप सबसे अधिक था।
उस समय आयोडीन युक्त नमक को बनाने की फैसिलिटी केवल 0 .15 मिलियन मीट्रिक टन नमक ही बना पाती थी जो जरूरत से बहुत कम थी | इसीलिए प्राइवेट सेक्टर को आयोडीन युक्त नमक बनाने की आजादी मिली और सबसे पहले टाटा ने इसका प्लांट लगाया।
वर्ष 1983 में एक बड़ा मोड़ आया जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने बीस सूत्री कार्यक्रम में पॉइंट नंबर 8 पर आयोडीन युक्त नमक को शामिल कर लिया और उसके बाद आयोडीन युक्त नमक के उत्पादन को पूरी तरह से निजी सेक्टर के हवाले कर दिया गया और सरकार इसमें से बाहर हो गयी।
नमक की कीमतों को कम रखने के लिए सरकार ने मुख्य घटक पोटाशियम आयोडेट पर सब्सिडी देनी चालू कर दी।
सन 1986 में स्मायलिंग सन हँसता हुआ सूरज का लोगो लांच किया गया।
पांडव और उनके सह शोधार्थियों ने वर्ष 2003 में यह बताया कि देश में आज भी सिर्फ रेलवे द्वारा ट्रांसपोर्ट किये जा रहे नमक के आयोडीन लेवल को जांचने का सिस्टम मौजूद है , जितना नमक रोड के द्वारा भेजा जा रहा है वो किस क्वालिटी का है उसके बारे में कह पाना मुश्किल है।
भारत सरकार के एक ओर्डर जिसे वर्ष 1973 में जारी किया गया था के अनुसार देश में मिलिट्री की ट्रेन के बाद दुसरे नंबर पर उस ट्रेन को प्राथमिकता दी जाएगी जिसमें नमक की बोगी होगी।
यह आदेश आज भी लागू है ।
वर्ष 1996 में नमक उत्पादन के पूरे सेक्टर को डी लाइसेंस्ड कर दिया गया मतलब आयोडीन युक्त नमक बनाने के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी | इससे यह पता करना मुश्किल हो गया के कौन कहाँ कितना नमक बना रहा है।
केरल महाराष्ट्र और आँध्रप्रदेश को छोड़ कर लगभग सभी राज्य आयोडीन युक्त नमक के अलावा सभी नमक को मनुष्यों के खाने में प्रोयोग को प्रतिबंधित कर चुके थे वर्ष 1997 में भारत सरकार ने एक बड़ा फैंसला लेते हुए उस वक़्त लागू PFA एक्ट 1954 में संशोधन करके भारत में खाने के नमक के लिए आयोडीन युक्त नमक के अलावा सभी प्रकार के नमक पर प्रतिबन्ध लगा दिया |
लेकिन काफी हाय तौबा मचने के बाद वर्ष 2000 में इस बैन को हटा लिया गया |
बाकी राज्य अपने स्तर पर बैन को लगाए रहे लेकिन गुजरात और उडीसा ने बैन को मानने से इंकार कर दिया |
वर्ष 2005 में (टाइमिंग नोट कीजिये ) में एक बार फिर से पूरे देश में बिना आयोडीन युक्त नमक का उत्पदान बिलकुल बैन हो गया और आज भी यह बैन पूरे देश में लागू है |
आयोडीन नमक के पीछे एक संगठित लॉबी काम करती है और आज भी इस नमक के धंदे से प्रॉफिट विदेशी मुल्कों को जाता है क्यूंकि आयोडीन नमक का प्रमुख घटक पोटाशियम आयोडेट आज भी 100% इम्पोर्ट किया जाता है।
इसकी कीमत कम रखी जाए इसीलिए भारत सरकार इसपर सुब्सीड़ी देती है | तमाम आई आई टी और बड़े बड़े वैज्ञानिक संस्थान होने के बावजूद हम पोटाशियम आयोडेट यौगिक का निर्माण करने में अक्षम हैं।
अब सवाल यह उठता है के क्या हमें आयोडीन और कहीं से भी मिल सकता है | ब्रिटिश डाएटिक एसोसिएशन द्वारा छापी गयी एक फैक्टशीट से पता चलता है के गाय के दूध में सबसे ज्यादा आयोडीन होता है।
ये बात पढ़ के भाई किसे के पेट में दर्द होवे तो इस लिंक पे जा के पढ़ लियो
https://www.theibsnetwork.org/assets/files/pdfs/Iodine-food-fact-sheet.pdf
मेरे भड़क न करियो भाई और इसके अलावा सब्जियों में बहुत आयोडीन होती है।
यही डाकुमेंट यह भी बताता है के फ़ालतू फंड में आयोडीन खाने से थायरोइड सम्बंधित रोग भी होते हैं | अब भाई सारे अपने घर में चेक करके बताओ किसकी बीवी थायरोनोम की दवाई नहीं खाती।
कोई प्रेगनेंसी आज की तारिख में बिना थायरोनोम के हो नहीं सकती।
हुतात्मा भाई राजीव दीक्षित जी ने भी इस बाबत हमें पहले चेताया था उनका वक्तव्य यहाँ सुना जा सकता है
अब एक बार जान लीजिये की जो इतना महंगा नमक हम लेकर आते हैं क्या वो हमें आयोडीन की आपूर्ति कर पाता है जवाब नहीं , क्यूँ ? जनाब इसीलिए कि तीस डिग्री तापमान पर यदि आयोडीन नमक सब्जी में डाल दिया तो आयोडीन का कुछ और ही बन जाता है शरीर में जाकर वो थायरोइड ग्रंथि के साथ क्या करता है वो घर की महिलाओं की थायरोइड रिपोर्ट आपको बता देगी जो आजकल सभी को करवानी पड़ती है।
पूरे मामले की गहरी पड़ताल करने के बाद मेरी फ़ूड टेक्नोलॉजिस्ट होने के नाते राय इस प्रकार है।
- देसी गाय के दूध का बंदोबस्त किया जाये , उन ढक्कनों को वैचारिक तौर पर मार भगाया जाए जो गाय के अमृत तुल्य दूध को फैट के आधार पर तौलते हैं और सस्ता बताते हैं |
- आर्गेनिक सब्जियों की व्यवस्था भी तत्काल प्रभाव से की जानी परम आवश्यक है |
- सफ़ेद नमक का के करना है वो मेरे से मत पूछो बस ठा के कर दो
- हल्का गुलाबी चट्टानी नमक सर्वश्रेष्ठ है इसको कहीं से ढूंढ कर ले आओ |
- आयोडीन युक्त नमक के पीछे एक संगठित लाबी काम करती है और जो इंडस्ट्री फंडेड है उसका काम इसके फेवर में पूरा महौल बना कर रखना है |
मेरे संग्रह में एक रिसर्च पेपर है जिसमें यह साफ़ साफ लिखा है के किस प्रकार से कद्दावर व्यक्तियों को अपने प्रभाव में लेने से ले कर बहुत छोटे दुकानदार तक की चैन को मैनेज किया जा रहा है इस आयोडीन युक्त नमक वाले प्रोग्राम में।
यदि देश का प्रबुद्ध वैज्ञानिक वर्ग आज इस मुद्दे पर अनुसंधान शुरू करता है तो आने वाले दस बीस वर्षो के बाद हो सकता है के हम कोई बेहतर निर्णय ले पायें या कोई अच्छा विकल्प अपने देशवासियों को दे पाएं ।
मेरे निजी अनुमान के अनुसार यदि स्वदेशी नमक का व्यापार शुरू किया जाये तो 1 करोड़ रोजगार तुरंत देश में मिल जायेंगे , फिलहाल उनका प्रॉफिट/बजट मल्टीनेशनल कम्पनिया खा रही हैं।
नमक की झीलें , नमक के कुँए , नमक बनाने वाली जातियां सभी जीवित हो जाएँगी जो आज एस सी एस टी बनी आरक्षण मांगती नज़र आती हैं वे अच्छे से जीवन यापन कर पाएंगी।
अगर मैं वैश्विक मांग का आकलन कर लूँ तो हम पूरी दुनिया को सर्व श्रेष्ठ नमक खिलवा सकते हैं और अपने देश में रोजगार के अनंत अवसर पैदा कर सकते हैं।
पर मेरी माने कौण है , भाई अपना घर सुधार लो और मरण दो दुनिया नै |
ढूंढो स्वतंत्र कुमार बरगा भाई अपने आस पास , आज तो फिर भी मिल जायेगा दस साल के बाद शायद न मिले।
गाँधी जी ने नमक बनाने के लिए जो डांडी यात्रा की थी उससे बहुत दूर आ चुके हैं हम सरकते सरकते।
शोले में कालिया गब्बर सँवाद हमारे उपर पूरी तरह से लागू होता है।
शोले: सरदार मैंने आपका नमक खाया है, चल अब गोली खा।
असल जिंदगी में: जनाब मैंने आपका आयोडाईजेड नमक खाया है : चलो अब गोली खाओ (थायराइड, BP, और पता नहीं कौन कौन सी)