जीवन के कई सवाल ऐसे होते हैं जिनके हल किताबों में कभी नहीं मिलते हैं क्युरोसिटी के कीड़े बरसों बरस उन सालों पर एड़ी ठाये इंतज़ार करते रहते हैं कि कभी तो कोई महाबली गुणीजन ऐसा टकर जाएगा जो सवाल के साथ न्याय कर देगा
साल 1992 में 10+1 का छात्र बनकर यूनिवर्सिटी कालेज रोहतक में पहुंचा और रोहतक जिले के देहात से आये बालकों से मेरा पहला सम्पर्क हुआ और मेरे तो सवाल बहुत रहते थे फिर भी मैं सुनने में ज्यादा यकीन रखता था
मुझे एक बात पता चली कि गाम गुहांड का भाईचारा होता है मतलब जिन गाँवों की सीमायें आपस में मिलती हैं उनमें शादी ब्याह नहीं होते हैं लोग आपस में भाई बहिन के जैसे एक दूसरे के साथ सम्बन्ध निभाते हैं गाँव के अंदर शादी ब्याह का तो सवाल बड़ा मुश्किल है ही
इस बात का कारण मुझे कोई बता ना सका मैं बरसों बरस इस सवाल को ऐसे ही लिए घूमता रहा साल 2017 आ गया और मैं एल.एल.एम् का थीसिस वर्क कर रहा था और मेरी मदद और मार्गदर्शन कर रहे थे डॉ रणबीर सिंह फोगाट जी जिनका हरियाणा के देहात पर बहुत शानदार रिसर्च वर्क है और हरियाणा के देहात के लगभग दस लाख फोटो उन्होंने अपने तीस वर्ष के शनिवार रविवार को चलने वाले स्वयं प्रायोजित रिसर्च वर्क के दौरान खींचे हुए हैं
मेरी थेसिस की अंग्रेजी ठीक करने में उन्होंने मेरी इतनी मदद की मैं बस उनकी बगल में बैठा बैठा सीत राबड़ी कभी हलवा खाता रहा और पूरी वर्तनी उन्होंने ठीक करदी हरेक लॉ पॉइंट पर डिस्कस होता रहा और वो मेरे से बस एक बात पूछते तुम कहना क्या चाहते हो फिर शब्द वो अपनी चॉइस से निकाल कर लाते
उसी दौरान मैंने बरसों से पेंडिंग सवाल पूछ डाला जिसका जवाब उन्होंने एक सेकंड में दे दिया
उन्होनें कहा देश के जिस खित्ते में यह कानून समाज ने लागू किया हुआ है वहां सदियों से लोगों का एक ही काम धंधा है कृषि पूरा जीवन कृषि के चारों और ही घूमता है गाँव बड़े बड़े हैं इलाके दूर दूर तक फैले हैं
खेत दूर दूर हैं और समाज की महिलाएं घर और खेत दोनों मोर्चों पर डटी रहती हैं
समाज ने मिल बैठ कर काम करने सम्बंधित कुछ नियम बनाये जिसमें महिला सुरक्षा को केंद्र में रखा गया
यदि गाम गुहांड का भाई चारा कर दिया जाए तो ईर्रेस्पेक्टिव ऑफ़ गोत्र गाम गुहांड के लोग आपस में भाई बहन हो जायेंगे और महिलाएं बिना किसी डर भौ के खेतों में अपनी स्वतंत्रता और सहूलियत से काम कर पाएंगी और सिर्फ इसी एक नियम की वजह से प्राचीन काल से ही हरियाणा की महिलाओं में एक ऐसा कांफिडेंस मिलता है जो बाकी सब जगह नहीं दिखाई देता है
यह बात मेरे समझ में एक मिनट में आ गयी और पूरा कांसेप्ट क्लीयर हो गया साथ में ही कानून और मर्यादा का तुलनात्मक अध्यन भी डॉ साहब ने एक मिनट में कर दिया
उन्होंने बताया कि हमारा समाज मर्यादा से चलने वाला समाज है और मर्यादा समाज के अंदर से उठ कर बाहर आती है और उसके कस्टोडियन समाज के सभी लोग होते हैं जिससे उसे इंस्टाल करने में किसी अथॉरिटी की आवश्यकता नहीं होती है
वो घर में डेली रूटीन के कामों के संग अपने आप ही समझ के सभी के मनों में समान रूप से साथ विकसित हो जाती है
इसके उलट कानून ऊपर से थोपा जाता है और कानून के साथ एक अथॉरिटी भी थोपी जाती है जो डंडे से उसकी विवेचना अपने हिसाब से लागू करके उसे इम्प्लेमेंट करती है
कानून पेचीदा होता है जबकि मर्यादा सरल होती है
कई बरस कानून की पढ़ाई करने के बाद और जुरिस्प्रूडेंस जो कानून का दर्शन शास्त्र है उसे पढने के बाद जब मैंने उसमें डोक्टरीन ऑफ़ मर्यादा खोजा तो नहीं मिला
मर्यादा जैसा टाइम टेस्टेड सोशियोलीगल इंस्ट्रूमेंट होने के बावजूद हम कहाँ फंसे खड़े हैं
मेरे एक और सीनियर साथी हैं एडवोकेट गौरव कोहली जी उन्होंने आज मेरी जम के क्लास लगाई है और मुझे कहा कि महिलाओं को सम्पति में अधिकार देने पर अपना वर्जन बताओ
मैं यह मसला भी यहाँ इसीलिए जोड़ रहा हूँ क्यूंकि बात खेती किसानी से जुडी है पिछले कुछ सालों तक देश में खेती किसने ही मुख्य रोजगार देने वाला पेशा था और सर्विस सेक्टर इतना अधिक विस्कित नहीं था इसीलिए जो कानून बने या मर्यादा के तौर पर प्रचलित थे उनमें महिलाओं को संपत्ति में बंटवारा करके हिस्सा नहीं मिलता था
फिर कानून बन भी गया लेकिन महिलाएं हिस्सा छोड़ने लग गयी कुछ लेने भी लग गयी
बात असल है क्या खेती चूँकि एक सामूहिक काम करने का पेशा है मान लीजिये एक घर में दस एकड़ जमीन है एकल परिवार का उदहारण समझ लेते हैं पिता और बेटा खेती करते हैं बिटिया की शादी दूर के किसी गाँव में हो जाती है दस एकड़ में से तीन एकड़ का मालिक अब वो परिवार हो गया जिसने वहां कभी आकर खेती नहीं करनी है वो यह कह देता है कि तीन एकड़ बेच कर उसके पैसे हमें दे दो
कानून का क्या बिगड़ता है उसके घर से क्या जा रहा है
अब तीन एकड़ बेच दिए पैसे लड़की के ससुराल में भेज दिए अब लड़के की शादी हुई उसके वहां से भी तीन एकड़ के पैसे लेने ही पड़ेंगे क्यूंकि कानून है
कानून के मालिकों का तो सिस्टम बढ़िया बैठ गया हर रोज जमीने बिकेंगी और खरीदी जाएँगी उन्होंने ने तो स्टाम्प ड्यूटी गिनी हुई है उनका तो हर हाल में फायदा है
पहले यह मुश्किल दिखाई देता था अब लोग वैसे भी खेती छोड़ते जा रहे हैं और हिस्सा देने में कोई समस्या नहीं है लोग दे भी रहे हैं लड़कियां भी खुल कर मांग रही हैं
हिन्दू समाज हमेशा एवोल्व होने वाला समाज है जिसमें प्रयोगधर्मिता का स्वागत किया जाता है हालात कैसे भी हों लोग अपने आप में सुधार करके आगे बढने का प्रयास करते ही हैं
जो लोग एक सिस्टम सेट करके खेती कर रहे हैं उनके चैलेन्ज तो हर रोज बढ़ाये ही जा रहे हैं पहले लेबर को नरेगा दे दिया उसे खेती से लिंक नहीं किया अब फ्री का राशन भी उपलब्ध है
ऐसे हालातों में खेती करने का मन भी लोगों का कम ही है
मर्यादाओं वाले सिस्टम में वही लोग फिट हो सकते हैं जिन्हें अपने कर्तव्यों की पड़ी होती है
कानून के ग्राहक तो हक़ मांगने वाले लोग ही ज्यादा होते हैं जो बस साडा हक ऐथे रख से आगे कुछ नहीं सोचते
व्यवस्था को भी ऐसे लोग ही पसंद आ रहे हैं क्यूंकि समाज जितना बिखरा हुआ होगा लोग जितने टूटे हुए होंगे उतना उन्हें मनमुताबिक तरीके से जोता जा सकेगा
कर्जाऊ , नशेडी , व्यभिचारी , भ्रष्टाचारी नागरिक एक विशेष तरीके से उपजाए जा रहे हैं
साफ़ सुथरी सोच वाले सीधी रीढ़ वाले सच्चे लोग तो इस तरह खतरा माने जा रहे हैं जैसे साईकिल जीडीपी के लिए बहुत बड़ा खतरा होती है