एग्रीमार्केटिंग के चैलेंजस और संभावनाएं

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आज सुबह सुबह डॉ देवेन्द्र शर्मा जी से फोनपर बात हुई और उन्होंने बताया कि वे रांची में हैं और एक बड़ी गोष्ठी में अपनी बात रखने आये हैं और साथ ही में टमाटर से करोड़पति बने किसान के बारे में भी चर्चा हुई । आज दोपहर होते होते खबर डेवेलोप होने लगी है कि हिमाचल कि बल्ह घाटी में सौ से ज्यादा ऐसे किसान हैं जो इस सीजन में टमाटर बेच कर करोडपति हुए हैं और इस साल उनका टमाटर का एक क्रेट जो पहले 200 रुपये का बड़ी मुश्किल से बिकता था इसबार 2600 रुपये तक बिका है और आढतियों कि डिमांड को किसान पूरा नहीं कर सके ।

डॉ देवेन्द्र शर्मा जी कहते हैं यही एक रास्ता है जिसकी झलक किन्ही कुदरती कारणों के चलते हमें दिखाई दी है कि किसानों का उत्पाद महंगा खरीदा जाये और उन्हें दो पैसे बचें जिससे इस प्रोफेशन में भी स्थिरता आये और गाँव देहात के हालात सुधरें ।

मुझे वो तस्वीरें बहुत अच्छे से याद हैं जिसमें किसान सड़क किनारे टमाटरों के क्रेटस खाली करके भाग जाया करते थे और फिर उन खाली क्रेट्स और खिंडे हुए टमाटरों के फोटो छाप छाप कर छाती कूट प्रोग्राम मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई देता था और सारा देश उसमें वैचारिक तौर पर फंसा हुआ नज़र आता था।

एग्री मार्केटिंग का सिस्टम हमारे देश में बिलकुल अलझ पलझ है MSP घोषित होने के बावजूद भी देश में उत्पादक को कोई गारंटी नहीं है कि उसकी फसल सरकारी रेट पर बिक जायेगी। देश में कौन से वस्तु कहाँ पर किस रेट में बिक रही है। इसकी सटीक जानकारी भारत सरकार के पास हर पन्दरह दिन में पहुँचती है इसके लिए सान्खियिकी मंत्रालय नें सात आठ सौ स्टेटिसिटीकल अधिकारियों की एक बड़ी टीम जिला स्तर पर डेप्युट की हुई है। वो लोग कस्बे स्तर तक का डाटा कलेक्ट करके भारत सरकार को ऑनलाइन सिस्टम के माध्यम से भेजते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही मैंने एक जिले में इस प्रक्रिया को बड़ी नज़दीक से देखा है और मुझे बहुत संतुष्टि हुई है कि भावों पर निगरानी रखने की कितनी शानदार व्यवस्था हमारे देश में बनी हुई है।

लेकिन किसान कि जहाँ बात आती है उसके उत्पाद की  एग्री मार्केटिंग में  बहुत सारे मसले हैं जिनमें से कुछेक इस प्रकार हैं:-

  • हमारे देश में व्यवस्था से उत्पादन कराने और बढ़ाने के लिए लम्बा चौड़ा सिस्टम बना रखा है बना रखी है लेकिन बिकवाने के लिए कुछ भी नहीं है। ना सोच है ना आदमी हैं ना कोई योजना है और ना ही कोई मूड है । नतीजा हम  सबके सामने है।
  • जब देश में मुनिसिपालिटी का एक्ट फ्रेम किया गया तो उसमें एक लाइन चुपके से जोड़ दी कि बैलगाड़ी मुनिसिपालिटी एरिया में प्रवेश नहीं कर सकती है क्योंकि एक्ट व्यवस्था बनाने वालों को पता था यदि शहर में बैलगाड़ी आने दी तो किसान अपने उत्पाद बेचने के लिए ले आयेगा। बस एक लाइन से किसान की आर्थिक नसबंदी कर दी।
  • इसी तरह मोटर वेहीकल एक्ट में मोटर साइकिल  सिर्फ घूमने और तफरी करने के लिए रखी गयी है कोई व्यक्ति मोटर साइकिल  पर रोजगार करने की सोच ले तो वो इलिगल है।
  • मैं कितनी ही बार देखता हूँ कि गाँव से मोटर साईकिल पर दूध के दो ड्रम बाँध कर आये हुए युवाओं के संविधान के रिश्तेदार सड़क में रोककर टोकते हैं और उनसे कभी दूध और कभी माया की डिमांड करते हैं यह देख कर मुझे तो बहुत दुःख होता है और उस सोच पर मन केन्द्रित हो जाता है कि कानून लिखने वाले को पता था कि मोटर साईकिल सिर्फ तफरी के लिए ही प्रयोग में आने देना है बस।

डॉ देवेंदर शर्मा जी देश में एक नैरेटिव सेट करने की बात कर रहे हैं जिसमें जन जन के मन में इस बात कि फ़िक्र हो कि देश में उत्पादक को उसकी मेहनत के पैसे मिल भी रहे है या नहीं अभी तक हम अपने देश में कोलोनियल माइंड सेट के साथ ही देश चला रहे हैं सारे कानून शोषण कि मानसिकता के साथ ही लिखे हुए हैं अभी देश में एक बड़ा काम होना बाकी है जिसमें देश के लोग अपनी जरूरतों और हालातों के मुताबिक़ सारे कानून फिरसे लिखवायेंगे। कानूनों के इम्प्लेमेंटेशन में भी भी अभी बहुत स्कोप है।

मैं यदि डॉ देवेन्द्र शर्मा जी के संघर्ष को देखता हूँ तो मुझे हरेक काम आसान लगता है मैंने डॉ साहब को कोई लभगभ दो दशकों से जानता हूँ और आज से कई बरस पहले जब डॉ साहब किसानों कि पेंशन की बात करते थे कोई मानता नहीं था लेकिन डॉ साहब ने अपने लेखों और अपने भाषणों से देश में एक नैरेटिव सेट किया और आज देश के सभी किसानों को 6 हज़ार रुपये सालाना पेंशन आती है जिसका नाम पी एम किसान निधि सब जानते हैं।

इन्टरनेट और सूचना क्रान्ति से भी मैं बहुत ज्यादा आशावान हूँ क्यूंकि मैंने यह देखा है कि कितने ही किसानों के बालक पांच दस साल कम्पनियों में काम करके वापिस जब अपने खेतों पर पहुंचे तो उन्होंने वहां सीखे प्रबंधन और एकाउंटिंग के गुरों को अपनी खेती किसानी में प्रयोग करना शुरू किया तो आज एक कामयाब किसान बनकर रेस्पेक्ट रिवार्ड और रिकग्निशन तीनों कमा रहे हैं। मेरठ के नितिन काजला , निर्मेश , मुरादाबाद के अरेंद्र बरगोटी आदि अनेकों ऐसे उदहारण हैं जो अपने खेतों का एक एक दाना खुद रिटेल कर रहें हैं।

सोशल मीडिया का सार्थक उपयोग भी एक बड़ा कारक है जो इन किसानों की कामयाबी की वजह बना है। ठगों से बचाव भी इसी सोशल मीडिया कि वजह से संभव हुआ है पहले देश में किसानों को ठगने वाला एक बड़ा तंत्र सक्रिय था जिस पर इस सोशल मीडिया कि वजह से लगाम सी लगती हुई नजर आती है कोई किसी कोई एकाध बार ठग ले तो चल सकता है लेकिन रोज रोज अब संभव नहीं है। इससे भी एक बड़ी राहत मिली है और आर्थिक तरक्की का रास्ता खुला है।