किसान सुरेंद्र सिहाग जी जागृत कृषि ऋषि हैं और इनका पिंड ढींगावाली है जो पंजाब के अबोहर टाउन से लगभग 28 किलोमीटर दूर है। अपने परिवार की कुल लगभग 115 एकड़ भूमि पर सन 1992 से जैविक खेती के प्रयोगों को चरणबद्ध तरीके से करते आये हैं।
जो भी लोग इन्हें जानते हैं वो इनके व्यवहार और इनोवेटिव सोच के चलते इनके प्रति श्रद्धा का भाव रखते हैं।
कृषि नीतियों पर इनका बड़ा शोध रहता है आज सुबह इन्होंने अपना बहुमूल्य समय लगा कर मुझे एक नोट भेजा जिसने मेरी आँखें खोली और मेरा हृदय परिवर्तन भी हुआ।
किसान सुरेंद्र सिहाग जी ढींगावाली अबोहर पंजाब से लिखते हैं:- पिछले कुछेक समय से धान पुआल व गेहूं अवशेष जलाने के नाम पर किसानों को सीधे दोषी ठहराया जाता रहा है ( यह भी सही है कि किसानों को इतनी बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो रहे जैविक कार्बन को फूंक देना उनके लिए सबसे बड़ा नुक़सान है )
जबकि विकास के नाम पर शहरों में 24 घंटे औद्योगिक इकाइयां ज़हर उगलती हों।
इस प्रपंच के बहाने पिछले बरस पंजाब में विदेशी आयातित ट्रैक्टर व बेलर मात्र 1.5 करोड़ रुपए की लागत पर आया, जबकि इस बार 2.5 करोड़ रुपए की लागत का आ गया है। (क्योंकि पिछला कम हार्सपावर का था )
आइये अब इनका गणित समझें
- खेत में कम्बाईन हार्वेस्टर चलेगी ( जो नीचे एक से डेढ़ फुट फ़सल छोड़ देती है) , इसके साथ अनाज के लिए ट्रैक्टर ट्राली।
- एक ट्रैक्टर चालित कटर द्वारा बचे हुए पौधे के अवशेष काट दिए जाते हैं।
- अब बारी आती है ट्रैक्टर चालित रैक की जो बिखरे व काटे गए अवशेष को दूर से इकट्ठा करते एक सीधी पंक्ति में इकट्ठा करने हेतु चलाया जाता है।
- महत्वपूर्ण काम को अंजाम देने हेतु अब बारी आती है बेलर मशीन की , जो उस अवशेष की गांठ बनाते चलती है , ऊपर जिस बहु मूल्य बेलर का ज़िक्र किया गया है वह 300-400 किग्रा की गांठ तैयार कर गिराता चलता है।
- चूंकि इतनी भारी गांठ उठाना मानवीय बस का तो होगा नहीं , तो यहां पर एक front end loader की जरूरत होती है जो दूसरे ट्रैक्टर ट्राली में वह गांठें लाद देता है।
- अब किसान का खेत खाली हो जाता है और फिर जा कर कहीं वह आगामी फ़सल की बोआई कर पाता है।
- एक एकड़ खेत में 6 बार से 8 बार तक भारी मशीनरी व ट्रैक्टर चलेगा तब जाकर फ़सल बोई जाएगी और वह फ़सल अवशेष की गांठ , वह तो अभिषप्त है जलने को– किसान के खेत में नहीं तो थर्मल युनिट में ही सही।
जबकि इसका दूसरा मशीनी विकल्प है
जापान से आयात होने वाली छोटे आकार की ट्रैक पर चलने वाली हार्वेस्टर कम्बाईन , इसकी विशेषता रहती है कि यह फ़सल को आदमी की तरह जमीन की सतह से काटती है और पुआल को आप चाहें तो सीधा नीचे गिराती है।
वह भी साबुत/आप चाहें तो बांधकर भी गिराएगी और यदि चाहें तो बारीक करते खेत में बिखेर देती है।
यदि आप पुआल को साबुत रखते हैं तो वह पशु चारा हेतु खेत से ही उठा लिया जाता है ( चारा के रूप में किसान को इतना पैसा मिलता है जो उसके कटाई खर्च की भरपाई हो जाती है– दूसरा वह अवशेष पशुओं के आहार के रूप में उनकी भूख मिटा फिर से अच्छा जैविक कार्बन बनता है )
बस एक बार में किसान अपनी फ़सल उठाते दूसरी फ़सल के लिए खेत तैयार करते समय से बोआई भी कर सकता है/बार बार ट्रैक्टर चलाने का झंझट नहीं/फ़सल अवशेष भी नहीं जला/आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ता/अवशेष का सदुपयोग भी हुआ और उससे फिर जैविक कार्बन भी धरती को वापिस मिल जाएगा।