सीड जर्मिनेशन टेस्ट का सांस्कृतिक रूप है हरेला पर्व

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साल 2001 से 2004 तक मेरी पोस्टिंग उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में रही जहाँ मेरा काम आम जन द्वारा किये जा रहे आविष्कारों और परम्परागत ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ उदहारणों को ढूंढ कर उन्हें सीख कर उनका अभिलेखन करना था और भारत सरकार के विभाग नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन को भेजना था।

मैंने कुमाऊं क्षेत्र के कोने कोने में अनेकों यात्रएं की वहां लोगों के घरों में रहा और उनके रहन सहन खान पान कृषि पशुपालन और संस्कृति विषय पर अनगिनत चर्चाएं की और इन्हीं सब के बीच में अनेकों बार जिक्र आया हरेला का

हरेला एक पर्व है जो साल में तीन बार मनाया जाता है यह बेसिकली एक सीड जर्मिनेशन टेस्ट है जिसे संस्कृति ने इतना अपना लिया है कि यह एक जन जन का घर घर का पर्व बन चुका है चूँकि पहाड़ में कृषि और पशुपालन लगभग पूरी तरह से महिलाओं के हाथ में रहे हैं इसीलिए इनसे जुड़े हरेक क्रिया कलाप में समझबूझ और उत्सव का बैलेंस्ड मिश्रण नज़र आता है।
बीज कृषि का मूल आधार है जिसे हम मैदानों में रहने वाले अपनी कंटीन्यूअस नालायकी के चलते डिगा चुके हैं लेकिन पहाड़ में अभी भी बीज खुद ही बनाये जाते हैं और उन बीजों की शुध्दता और गुणवत्ता की निरंतर जांच की जाती है इसी वैज्ञानिक जांच को हरेला पर्व मना कर किया जाता है।

हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है, पहला चैत्र मास, दूसरा सावन मास और तीसरा आश्विन महीने में।

हरेला पर्व से सावन शुरू होता है इस पर्व को शिव पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। सावन वाले हरेला की शुरुवात इसी साल 4 जुलाई को हुई थी जो सावन मास का पहला दिन भी था। लोग हरेला देख कर यह बता सकते हैं कि इस सीजन फसल कैसी होने वाली है।

हरेला पर्व से 9 दिन पहले टोकरी में पांच या सात प्रकार के अनाज बोए जाते हैं और हरेला के दिन इसे काटा जाता है. मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा, किसान को कृषि में अधिक लाभ मिलेगा हरेला बोने के लिए स्वच्छ मिट्टी का उपयोग किया जाता है, इसमें कुछ जगह घर के पास साफ जगह से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है और उसे छानकर टोकरी में जमा लेते हैं और फिर अनाज डालकर उसे सींचा जाता है।

इसमें धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट शामिल होते हैं. हरेला को घर या देवस्थान पर भी बोया जाता है। घर में इसे मंदिर के पास रखकर 9 दिन तक देखभाल की जाती है और फिर 10वें दिन घर के बुजुर्ग इसे काटकर अच्छी फसल की कामना के साथ देवताओं को समर्पित करते हैं।

कल 16 जुलाई थी और कल पूरे कुमाऊं रीजन में सावन के हरेला पर्व की धूम थी मैं यहाँ चंडीगढ़ में बैठा बैठा हरेला का फील ले रहा था।

खेती किसानी एक मिलजुलकर सामूहिक रूप से हर दिन उत्सव मनाते हुए जीने की संस्कृति है जिसे हमने दूसरों की बहकाई में आकर जहर कर्जे और मरने मारने के माहौल में बदल डाला है और चारों और हाय हाय हुई पड़ी है।

भारतीय पारंपरिक पंचांग एक अत्यंत वैज्ञानिक डॉक्यूमेंट है जो नासा के सैटेलाइट से भी ज्यादा सटीक गणना करता है लेकिन अफसोस उसे हमें पढ़ना नहीं आता आये भी कैसे हमें सिखाया गया हो तो आ भी जाए।

क से कबूतर ख से खरगोश और ग से गधा बस इससे आगे हम पूरी दुनिया का चक्कर किताबों में ही काट लेते हैं इस रास्ते में बस हमारे गाँव और कस्बे नहीं आते हमारी संस्कृति नहीं आती क्योंकि वो हमें आत्म निर्भर और खुश रहना सिखाते हैं।